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________________ कोठारी कोठारी जोरावरमल मोतीलाल का खानदान सिकंदराबाद (दक्षिण) इस खानदान के पूर्वजों का मूल निवास स्थान बगड़ी (मारवाड़ ) का है। बगड़ी से इस परिवार के पूर्व पुरुष सेठ थानमलजी ने व्यापार निमित्त दूर २ के प्रदेशों का भ्रमण कर सबसे पहले अपनी एक फर्म बोलारम में स्थापित की । आपके हाथों से इस फर्म की काफी उन्नति हुई । आपके जोरावरमलजी नामक एक पुत्र हुए। आप बड़े धार्मिक विचारों के सज्जन हैं । आपके मोतीलालजी नामक एक पुत्र हैं। श्री मोतीलालजी कोठारी- आप शिक्षित तथा उन्नत विचारों के सज्जन हैं । आप बड़े व्यापार कुशल, भच्छे व्यवस्थापक तथा वर्तमान उन्नतिशील युग के सिनेमा व्यवसाय में निपुण हैं। आपने अपनी व्यापार चातुरी तथा दूरदर्शिता से अपनी फर्म की काफी उन्नति की है। तिरमिलगिरी, सिकन्दराबाद तथा हैदराबाद में सब मिलाकर आपके माठ सिनेमा बने हुये हैं । इधर कुछ वर्ष पूर्व ही हैदराबाद के कुछ शिक्षित एवं उत्साही सज्जनों ने दस लाख की पूंजी से 'दी महावीर फोटो प्लेज एण्ड थिएट्रिकल कम्पनी लि.' की स्थापना की है। इस संस्था का उद्देश भारतीय शिक्षाप्रद डामा एवं फिल्म प्रचार करवाकर सदपदेशों का प्रचार करते हुए द्रव्योपार्जन करना है। श्री मोतीलालजी की बुद्धिमानी तथा योग्य म्यवस्था से इस संस्था को काफी सफलता प्राप्त हुई हैं। आप ही वर्तमान में इसके मेनेजिंग एजण्ट हैं। इसके अतिरिक्त आपके यहाँ से "हैदराबाद बुलेटिन" नामक एक अंग्रेजी दैनिक पत्र भी निकलता है। आपका यहाँ की शिक्षित समाज में बहुत सम्मान है। आपके बुलेटिन अखबार की यहाँ पर भच्छी प्रतिष्ठा है। इसके साथ ही साथ आपका स्वभाव बड़ा सरल, मिलनसार तथा नम्र है। भाप बड़े सुधा... रक विचारों के सज्जन हैं। ओसवाल जाति की उन्नति करने की इच्छा आपको सदैव लगी रहती है। आप यहाँ की ओसवाल समाज में प्रतिष्ठित सज्जन हैं। सेठ बरदीचन्दजी कोठारी का.खानदान, जयपुर इस परिवार में सेठ देवीचंदजी कोठारी प्रतिष्ठित पुरुष हुए । आप बीकानेर से इन्दौर आदि स्थानों में होते हुए संवत् १८६० के करीब जयपुर आये । आपकी मालवा,कलकत्ता,बम्बई कानपुर, फरुखाबाद आदि २ स्थानों पर ५४ दुकानें थीं। संवत् १८८२ में आपका स्वर्गवास हुआ। आपकी जयपुर में छतरी बनी हुई है। आपके पुत्र मूलचन्दजी, कपूरचन्दजी, तिलोकचन्दजी, रायचन्दजी, और सर्वसुखजी ने जयपुर में अपनी अलग २ हवेलियाँ बनवाई। आप सब बंधु प्रतिष्ठित व्यापारी माने जाते थे।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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