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________________ कोठारी कैफियत की इज्जत प्रदान की है। आप यहाँ के आनरेरी मजिस्ट्रेट भी हैं। स्थानीय म्युनिसिपेल्टी के भी आप मेम्बर हैं । आपके इस समय चार पुत्र हैं जिनके नाम क्रमशः बा० धर्मचन्दजी, विरदीचन्दजी, खूबचन्दजी और जतनमलजी हैं। आप सब लोग अभी बालक हैं । सेठ मालचन्दजी को मकान बनाने का बहुत शौक है । आपके एक मकान का फोटो भी इस ग्रंथ में दिया जा रहा है । आपका व्यापार कलकत्ता में मेसर्स हजारीमल सागरमल के नाम से आर्मेनियम स्ट्रीट में होता है, तथा कोटकपूरा (पंजाब) नामक स्थान पर गल्ले का व्यापार होता है आपकी फर्म चुरू में सम्मानित समझी जाती है। ___सेठ सरदारमलजी का परिवार-सेठ सरदारमलजी का जन्म संवत् १९०२ का था । इस परिवार की विशेष तरक्की आपही के द्वारा हुई। आपने लाखों रुपयों की सम्पत्ति उपार्जित की । संवत् १९७१ में आपने चुरू स्टेशन पर एक धर्मशाला बनवाई । आपका स्वर्गवास संवत् १९७४ में हो गया। इस समय आपके दो पुत्र , जिनके नाम क्रमशः सेठ मूलचन्दजो और सेठ मदनचन्दजी हैं। आप लोग पुराने विचारों के हैं। आपने अपने पिताजी के स्मारक स्वरूप एक सरदार विद्यालय नामक एक स्कूल की स्थापना की है। आपको बीकानेर दरबार से छड़ी, चपरास व खास रुक्के इनायत हुए हैं। सेठ मूलचन्दजी के इस समय चम्पालालजी नामक एक पुत्र हैं। आजकल आप ही अपनी फर्म का संचालन करते हैं। आप उत्साही और मिलनसार व्यक्ति हैं। आपके फतेराजजी नामक एक पुत्र हैं। सेठ मवनचन्दजी के धनपतसिंहजी, गुनचन्दलालजी और भंवरलालजी नामक तीन पुत्र हैं। इस परिवार का व्यापार जूट, कपड़ा और गल्ले का है। इसकी दो शाखाएँ कलकत्ता में मेसर्स हजारीमल सरदारमल और चम्पालाल कोठारी के नाम से आर्मेनियम स्ट्रीट में है। इनके अतिरिक्त भिन्न २ नामों से मैमनसिंह, बेगुनबाड़ी, बोगरा, सुकानपोकर, बिलासीपाड़ा, कसबा, सिरसा, श्री गंगानगर इत्यादि स्थानों पर भी आपकी शाखायें हैं। यह फर्म यहाँ प्रतिष्ठित और सम्मानित समझी जाती है। सेठ केशरीचन्द गुलाबचन्द कोठारी, चुरू (बीकानेर) इस परिवार के सज्जन करीब २५० वर्ष पूर्व बीकानेर से चलकर चुरू नामक स्थान पर आये। जब आप लोगों के पूर्वज सन् 1५०० के करीब बीकानेर में रहते थे तब उन लोगों ने राज्य की बहुत सेवा की। उनमें से सेठ टाडमलजी भी एक थे । इनके पश्चात् सेठ कुशलचन्दजी बड़े व्यापार चतुर और साहसी सज्जन हुए। आपने अपने साहस और वीरता से बीकानेर स्टेट मे अच्छे २ कार्य किये । आपके कार्यों से प्रसन्न होकर तरकालीन बीकानेर दरबार ने आपको नोहर नामक एक गाँव जागीर स्वरूप तथा रहने के लिए एक हवेली प्रदान कर आपको सम्मानित किया था। आपके पश्चात् इस परिवार में
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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