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________________ ओसवाल जाति का इतिहास बच्चे २ के मुँह पर है। इतना होते हुए भी उनकी उदारता तथा दया-पूर्ण व्यवहार जिले की अराजकता' को दवाने में बाधारूप नहीं हुआ। अराजकों, धादेतियों और लुटेरों को वे कठोर दंड देते थे, जिनकी कहानियाँ भानपुरा के पुराने लोग आजभी बड़ी दिलचस्पी के साथ कहा करते हैं। इन्दौर दरबार ने आपकी सेवाओं से प्रसन्न होकर मौजे सगोरिया को इस्तमुरारी पट्टे से बदलकर जागीर में वख्शा जो आज भी उनके वंशनों के पास है । न कोठोरी सावंतरामजी ने सन् १८६९ में अपने पुज्य पिताजी की स्मृति में उनके दाह संस्कार की जगह गरोठ में एक सुंदर छत्री बनवाई, जिसके खरच के लिये सरकार की ओर से २५ बीघा इनामी जमीन और १००) सालियाना वख्शा गया । इस रकम के कम पड़ने की वजह से ६ बीघा जमीन और वहशी गई। अपनी मृत्यु से कुछ समय पहिले आप स्टेट कौंसिल के मेम्बर भी बनाये गये । आपका स्वर्गवास सन् १९०० में हुआ । कोठारीजी की भानपुरा में भी एक सुन्दर छत्री बनी हुई है जिसके साथ एक बगीचा भी है । नाम पर कोठारी शिवचन्दजी को पुश्तैनी जायदाद और आमदनी कोठारी सावंतरामजी के कोई संतान नहीं हुई अतः आपके दत्तक लिये गये । आप इस समय विद्यमान हैं। आप इस खानदान की के मालिक हैं। आप इन्दौर में ऑनरेरी मजिस्ट्रेट और जवाहरखाना स्टेट से "सरदार राव" का सम्माननीय खिताब भी प्राप्त है। दरबार में भी भापको बैठक प्राप्त 1 आपके इस समय २ पुत्र हैं । कमेटी के मेम्बर हैं । आपको कोठारी गंगारामजी का खानदान महाराजा होलकर की सेना में दाखिल होने के पश्चात् आपने कई लड़ाइयों में बड़ी वीरता के साथ युद्ध किया और अपनी योग्यता से बढ़ते २ जावरे के गवर्नर के पद तक को आपने प्राप्त किया । महाराजा यशवंतराव होल्कर ने अधिकारारूप होने पर आपको रामपुरा भानपुरा आदि कई स्थानों का गवर्नर नियुक्त किया। * उस समय में आपकी अधीनता में दस हजार सेना और दस तोपें रहती थीं तथा रेव्हेन्यु, दीवानी, फौजदारी इत्यादि सब प्रकार के अधिकार भी आपको दिये गये थे। इन परगनों में आपने शान्ति स्थापन का बहुत प्रयत्न किया और समय २ पर कई लड़ाइयाँ लड़कर अपनी बहादुरी और राजनीतिकुशलता का परिचय दिया। आपकी वीरता और कारगुजारियों का वर्णन इन्दौर राज्य के हुजूर फडनीसी के रिकार्डों में, सरजान मालकम के मध्य भारत के इतिहास में तथा और भी कई ग्रन्थों में मिलता है । • देखिये मि० एम्बरे मैक का चौकस आफ सेन्ट्रल इण्डिया पृष्ठ ३० । ११२
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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