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________________ ओसवाल जाति का इतिहास सेठ जोरावरमलजी का परिवार सेठ जोरावरमलजी ऐसे समय में अवतीर्ण हुए थे, जब कि भारतवर्ष की राजनैतिक स्थिति बे तरह डाँवाडोल हो रही थी । एक ओर औरंगजेब की मृत्यु हो जाने से दिल्ली का सिंहासन क्रमशः क्षीणबल होता चला जा रहा था। दूसरी ओर मुसलमानी शासन की इस कमजोरी से लाभ उठा कर महाराष्ट्रीय लोग भारत के भिन्न २ प्रांतो में लूट मार और खून खराबी मचा रहे थे, और तीसरी ओर अंग्रेज शक्ति धीरे २ अपना विकास करती जा रही थी । जिस समय अंग्रेज होग राजस्थान में राजपूत राजाओं के साथ मैत्री स्थापित कर उनके पारस्परिक वैमनस्य को कम करने का प्रयत्न कर रहे थे, उस समय सेठ जोरावरमलजी का बीकानेर, मारवाड़, जैसलमेर, उदयपुर, इन्दौर इत्यादि रियासतो में अच्छा प्रभाव था । इसलिये ब्रिटिश सरकार के साथ इन रजवाड़ों का मेल कराने में इन्होंने बहुत सहायता की। खास कर इन्दौर राज्य के कई महत्वपूर्ण कार्यों में सेठ जोरावरमलजी का बहुत हाथ रहा। सन् १८१८ में ब्रिटिश गवर्नमेण्ट के बीच अहदनामे करवाये । ब्रिटिश गवर्नमेंट और रियासतों के बीच जो अहदनामें हुए, उनमें कई मुश्किल बातों को हल करने में आपने अपने प्रभाव से बहुत सहायताऐं कीं । आपकी इन सेवाओं से प्रसन्न होकर ब्रिटिश गवर्नमेंट तथा होलकर गवर्समेंट मे आपको परवाने देकर सम्मानित किया । ईसवी सन् १८१८ में कर्मल टॉड मेवाड़ के पोलिटिकल एजंट होकर उदयपुर गये । मेवाड़ की आर्थिक दशा बहुत बिगड़ गई थी । ऐसी विकट स्थिति में कर्नल टॉड ने महाराणा भीमसिंहजी को सलाह दी कि सेठ जोरावरमलजी ने इन्दौर की हालत सुधारने में रियासत को बहुत मदद दी है, इसलिये यहाँ पर भी उनको बुलवाया जाये। इस पर महाराणा ने सेठ जोरावरमलजी को इन्दौर से अपने वहाँ निमंत्रित किया, और उन्हें वहाँ बहुत सम्मान पूर्वक रखकर उनसे कहा कि "आप यहाँ पर अपनी कोठी स्थापित करें, और राज्य के कामों में जो खर्च हो वह दें, और उसकी आमदनी को अपने यहाँ जमा करें । महाराणा की इस आज्ञा को मानकर सेठ जोरावरमलजी ने उदयपुर में अपनी कोठी स्थापित की । नये गाँव बसाये, किसानों को सहायताएं और लुटेरों को दंड दिलवाकर राज्य में शांति स्थापित करवाई। इनकी इन बहुमूल्य सेवाओं से प्रसन्न होकर २६ मई सन् १८२७ को महाराणा ने उन्हें पालकी और छड़ी का सम्मान और " सेठ" की सम्माननीय उपाधि प्रदान की तथा बदनोर परगने का पारसोली गाँव वंश परंपरा के लिये जागीरी में दिया । पोलिटिकल एजंट ने भी आपको अत्यन्त प्रबंध कुशल देख कर अंग्रेजी राज्य के खजाने का प्रबंध भी आपके सुपुर्द कर दिया । उस समय महाराणा सरूपसिंहजी के समय में राज्य पर १०००००० बीस लाख रुपयों का कर्ज हो गया था, जिसमें अधिकांश सेठ जोरावरमलजी बाचना का था। महाराणा मे आपके कर्ज का निपटारा करना २०३
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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