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________________ वेद मेहता मेहता मनोहरलालजी वेद का खानदान, उदयपुर इस प्राचीन खानदान के प्रारम्भिक परिचय को हम इसके पूर्व में प्रकाशित कर चुके हैं। इसका इतिहास मेहता थिरपालजी के पौत्र तथा चन्द्रभानजी के तृतीय पुत्र सूरतरामजी से प्रारम्भ होता है। यह हम प्रथम ही लिख आये हैं कि आप अपने भाइयों के साथ अजमेर आये और यहाँ से आप उदयपुर चले गये। उसी समय से आपका परिवार उदयपुर में निवास कर रहा है। मेहता सूरतरामजी के रायभानजी तथा बदनमलजी नामक दो पुत्र हुए। आप लोगों का व्यव. साय उस समय खूब चमका हुभा था। मेहता बदनमलजी संवत् १८९८ के लगभग उदयपुर भाये । आपने आकर अपने व्यवसाय को और भी चमकाया तथा बम्बई, रंगून, हाङ्गकांग, कलकत्ता आदि सुदूर के नगरों में भी अपनी फमैं स्थापित की। उस समय आप राजपूताने के प्रसिद्ध धनिकों में गिने जाते थे। आपकी धार्मिक भावना भी बढ़ी चढ़ी थी। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती चाँदबाई ने उदयपुर में एक धर्मशाला तथा एक मन्दिर भी बनवाया जो आज भी आपके नाम से विख्यात है। आपने मेवाड़ के कई जैन मन्दिरों के जीर्णोद्धार भी करवाये । मेहता बदनमलजी के निःसंतान स्वर्गवासी हो जाने पर आपके यहाँ भापके भतीजे मेहता कनकमलजी दसक आये। मेहता कनकमलजी का राज दरवार में खूब सम्मान था। आपको उदयपुर के महाराणा सरूप. सिंहजी ने संवत् १९१४ में सरूपसागर नामक तालाब के पास की २९ बीघा जमीन की एक बाड़ी बक्षी थी। जिसका परवाना आज भी आपके वंशजों के पास मौजूद है । इसके अतिरिक्त भापको राज्य की ओर से बैठक, नाव की बैठक, दरबार में कुर्सी की बैठक, सवारी में घोड़े को आगे रखने की इजत, बलेणा घोड़ा भादि २ कई सम्मान प्राप्त थे। आपने सबसे पहले उदयपुर महाराणाजी को बग्घी नजर की थी। आपके जवानमलजी तथा उदयमलजी नामक दो पुत्र हुए। इन दोनों का मापकी विद्यमानता में ही स्वर्गवास हो गया। असः आप अपने यहाँ बीकानेर से पन्नालालजी को दत्तक लाये । मेहता पचालालजी के मनोहरलालजी तथा सुगनमलजी नामक दो पुत्र हुए। मेहता मनोहरलालजी का जन्म संवत् १९४८ की भादवा बदी अमावस्या मे हुमा। आपने पी० ए० की परीक्षा पास कर एक वर्ष तक कॉ में अध्ययन किया। भाप नरसिंहगढ़ में सिटी मजिस्ट्रेट, सिविलजज तथा कस्टम्स और एक्साइज ऑफीसर रहे। इसके साथ ही आप वहाँ की म्युनिसीपैलिटी के महाइस प्रेसिडेण्ट तथा वहाँ की सुप्रसिद्ध फर्म मगनीराम गणेशीलाल के रिसीव्हर भी रहे। भापकी सेवाओं से प्रसन्न होकर रीजेंसी कौंसिल के प्रेसीडेण्ट कनक लुभाई, नरसिंहगढ़ तथा भोपाल के
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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