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________________ ओसवाल जाति का इतिहास में मेड़ते में स्वर्गवासी हुए । आपके पुत्र श्रीचन्दजी तथा उदयचन्दजी किशनगढ़ में निसंतान स्वर्गवासी हुए अतः श्रीचन्दजी के नाम पर मेहता सिद्धकरणजी दत्तक आये। किशनगढ़ में आपका सदावृत जारी था। मेहता लालचन्दजी के पुत्र लूनकरणजी ने व्यापार की बड़ी तरक्की की। आपने रतलाम, जावरा, आस्टा, उदयपुर, अजमेर, चंदेरी, भिंड, अटेर टोंक, कोटा आदि स्थानों में दुकानें खोली । आप अपने पुत्र रिधकरणजी तथा सिद्धकरणजी सहित संवत् १८८५ के करीब किशनगढ़ से अजमेर आये । और "लूनकरण रिद्धकरण" के नाम से अपना कारबार चलाया। आपने दूर २ स्थानों पर करीब २५-३० दुकानें खोली जिन पर सराफी तथा जमींदारी का धंधा होता था। आपका देहान्त अजमेर में सम्वत् १८८९ में हुआ । जहाँ लूँग्या के खेतरों में आपकी बड़ी बारादरी बनी है। मेहता रिधकरणनी-आप धर्मनिष्ठ व्यक्ति थे। आपने श्री शर्बुजय, गिरनार का एक संघ निकाला था। आपका किशनगढ़, जावरा आदि रियासतों से लेन देन का सम्बन्ध था। इन रियासतों ने १८९३ और १९०३ में आपको खास रुके भी दिये थे। किशनगढ़ के मोखम विलास नामक महल में आपकी तिबारी बनी हुई है। सं० १८९५ में जोधपुर नरेशश की ओर से आपको बैठने का कुरुब प्रदान किया गया था। आपके सहस्त्रकरणजी, तेजकरणजी, सूरजकरणजी, जेतकरणजी तथा जोधकरणजी नामक पांच पुत्र हुए। मेहता सिद्ध करणजी ने १८९० से उम्मेदचन्द श्रीचन्द के नाम से अलग व्यापार करना शुरू कर दिया। मापकी मृत्यु के पश्चात् आपके नाम पर आपके भतीजे सहस्त्रकरणजी गौद आये । मेहता सहस्त्रकरणजी बड़े भाग्यशाली पुरुष थे। भापको सं० १८९५ में जोधपुर राज्य से हाथी पालकी और कंठी का कुरुब प्राप्त हुआ था। अजमेर के अंग्रेज़ आफिसरों में आपका बड़ा सम्मान था। आपके मुनीम जोशी रघुनाथदासजी तक अजमेर के आनरेरी मजिस्ट्रेट थे । आपने अपने भाइयों के साथ अजमेर में गोड़ी पार्श्वनाथजी का मन्दिर बनवाया । आनासागर पर सम्बत् १९०५ में बाग और घाट बनवाया । आप पाँचों भाइयों का कम उम्र में ही स्वर्गवास हो गया था। आप पाँचों भाइयो के बीच मेहता तेजकरणजी के पुत्र बुधकरणजी ही थे। मेहता बुधकरणजी-आप लालचन्दजी और उम्मेदमलजी दोनों भ्राताओं के उत्तराधिकारी हुए । आपने बहुत पहले एफ० ए० की परीक्षा पास की थी। आप बड़े गम्भीर और बुद्धिमान थे। समाज में आपकी अच्छी प्रतिष्ठा थी। भाप संस्कृत और जैन शास्त्रों के अच्छे ज्ञाता तथा कानून की उत्तम जानकारी रखने वाले पुरुष थे। आपके देवकरणजी तथा रूपकरजी नामक दो पुत्र हुए। मेहता देवकरणजी तथा रूपकरणजी-आपका जन्म क्रमशः १९२५ के भाद्रपद में तथा १९५४ के भावण में हुआ। आप दोनों सजन अजमेर की ओसवाल समाज में वजनदार तथा समझदार पुरुष हैं। आप लोग बड़े विद्या-प्रेमी भी हैं । मेहता देवकरणजी भोसवाल हाई स्कूल के व्हाइस प्रेसिडेण्ट तथा रूपकरणजी बी. ए. उसके मंत्री हैं। रूपकरणजी के पुत्र अभयकरणजी सज्जन व्यक्ति हैं। यह खानदान अजमेर में एक प्राचीन तथा प्रतिष्टित खानदान माना जाता है । आपके पास कई पुरानी वस्तुओं, हस्तलिखित पुस्तकों तथा चित्रों का अच्छा संग्रह है। आपके गृह देरासर में कई पीढ़ियों से सम्वत् १५२७ की श्री पार्श्वनाथ की मूर्ति एवं सम्वत् १६७७ की एक चन्द्रप्रभु स्वामी की मूर्ति है। १८८
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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