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________________ श्री सवाल जाति का इतिहास जी नामक दो पुत्र हैं। आप लोग भी फर्म के कार्य का उत्तमता से संचालन कर रहे हैं । मन्नालालजी के भँवरलालजी एवं पूनमचन्दजी और कालूरामजी के चन्दनमलजी और जैवरीमलजी नामक पुत्र हैं । चन्दनमलजी उत्साही युवक हैं। आप भी फर्म का संचालन करते हैं।' सेठ उमचन्दजी- आपने भी अपनी फर्म की अच्छी उन्नति की । तथा मेघराज ऊमचन्द के नाम से व्यापार करना प्रारम्भ किया। आपका स्वर्गवास हो गया। आपके सात पुत्र हैं जिनके नाम क्रमशः मालचन्दजी, शोभाचन्दजी, हीरालालजी, संतोष चन्दजी, चम्पालालजी, सोहनलालजी और श्रीचन्दजी हैं । आप सब लोग मिलनसार व्यक्ति हैं। आप लोगों का व्यापार शामलात ही में हो रहा है । आपकी फर्म कलकत्ता में २६।१ आर्मिनियन स्ट्रीट में है यहां जूट का काम होता है। इसका तार का पता Sohanmor है। इसके अतिरिक्त भिन्न २ नामों से राजशाही, जमालगंज, और चरकांई ( बोगड़ा ) नामक स्थानों पर जूट तथा, जमींदारी और गल्ले का व्यापार होता है। सेठ तनसुखरायजी- - आपका जन्म संवत् १९३२ में हुआ । आप बचपन से ही बड़े चंचल और प्रतिभा वाले थे । आपने पहले तो अपने भाई छोगमलजी के साथ व्यापार किया । मगर फिर किसी कारण से आप अलग गये । अलग होते ही आपने अपनी बुद्धिमानी एवं होशियारी का परिचय दिया और फर्म को बहुत उन्नति की । आपका स्वर्गवास हो गया । आपके भूरामलजी नामक एक पुत्र थे । आपने भी योग्यतापूर्वक फर्म का संचालन किया । मगर कम वय में ही आपका स्वर्गवास हो गया। इस समय आपके तीन पुत्र हैं। जिनके नाम क्रमशः बाबू संतोषचन्दजी, धर्मचन्दजी और इन्द्रचन्दजी हैं । बाबू संतोषचन्दजी बड़े मिलनसार, शिक्षित और सज्जन प्रकृति के पुरुष हैं । आपके भाई अभी विद्याध्ययन कर रहे हैं। आपकी फर्म इस समय कलकत्ता में मेघराज तनसुखगास के नाम से १९ सैनागो स्ट्रीट में है । जहाँ बैंकिंग जूट एवं कमीशन का काम होता है। इसके अतिरिक्त चंपाई ( नबाबगंज) में भी आपकी एक फर्म है । वहाँ जूट का व्यापार होता है । यहाँ आपकी बहुत सी स्थायी सम्पति भी बनी हुई है । I इस परिवार के लोग भी तेरापंथी सम्प्रदाय के मानने वाले हैं । आप लोगों की ओर से राजलदेसर स्टेशन पर एक धर्मशाला बनी हुई है। जिसमें यात्रियों के ठहरने की अच्छी व्यवस्था है । सेठ रामजी का परिवार : -- हम यह ऊपर लिख ही चुके हैं कि सेठ लच्छीरामजी सेठ उम्मेदमलजी के पुत्र थे। ये राजलदेसर के प्रसिद्ध सेठ खड़गसेनजी के वहाँ दत्तक आये । ये बड़े प्रतिभा सम्पन्न एवं व्यापार कुशल व्यक्ति थे । आपने उस समय में अपनी फर्म कलकत्ता में स्थापित की थी जय कि मारवादियों की इमी गिनी फर्मे 1 १८४
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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