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________________ प्रोसबाट जाति का इतिहास आपके कुछ वर्षों के पश्चात् जोधपुर राजवंश के कुमार बीकाजी ने अपने शौर्य एवम् पराक्रम से बीकानेर राज्य की नींव डाली तथा . बीकानेर शहर बसाया। कहना न होगा कि इस समय राजलदेसर भो बीकानेर स्टेट में आ गया। जब यह बीकानेर में आगया तब भी इस वंश वाले सज्जम स्टेट की ओर से कामदार वगैरह २ स्थानों पर काम करते रहे। इन्हीं में मेहता मनोहरदासजी बड़े प्रसिद्ध व्यक्ति हुए । आप हो के नाम से आपके वंशज आज भी मनोहरदासोत वेद कहलाते हैं। आपके पश्चात् क्रमशः दीपचन्दजी, अचलदासजी एवम् साँवतसिंहजी हुए। सेठ सांवतसिंहजी के दो पुत्र हुए जिनके नाम क्रमशः उम्मेदमलजी एवम् दानसिंहजी था । उम्मेदमलजी वहीं राजलदेसर तथा आसपास के ग्रामों में अपना लेनदेन का व्यवसाय करते रहे। तथा दानसिंहजी वहाँ से चल कर मुर्शिदाबाद नामक स्थान पर आकर बस गये। तब से आपके वंशज यहीं निवास कर रहे हैं। सेठ उम्मेदमलजी के तीन पुत्र हुए जिनके नाम क्रमशः सेठ लच्छीरामजी, सेठ जैसराजजी एवम् खेठ मेघराजजी था। सेठ लच्छीरामजी वहों राजलदेसर निवासी सेठ खड़गसिंहजी के यहाँ दत्तक चले गये तथा मेघराजजी के परिवार वाले अलग हो गये। अतएव दोनों भाइयों का इतिहास नोचे अलग दिया जा रहा है। वर्तमान इतिहास सेठ जैसराजजी के परिवार का है। सेठ जेसराजजी का परिवार सेठ जेसराजजी-आपका जन्म संवत् १८८४ में हुआ। आपने अपने चाचा दानसिंहजी के साथ रह कर मुर्शिदाबाद में प्रारम्भिक विद्याध्ययन किया। आपको विद्या से बड़ा प्रेम था। आपने उर्दू, संस्कृत और अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान प्राक्ष किया था। पढ़ाई खतम करते ही आपने अपने नाम से कलकत्ता में कपदे का व्यापार प्रारम्भ किया। इन्हीं दिनों आपके भ्राता सेठ लच्छीरामजी भी कलकत्ता भाये । संवत् १९०५ में माप तीनों भाइयों के साले में मेसर्स खड़गसिंह लच्छीराम के नाम से चलानी का काम करने के लिये फर्म स्थापित की । भाप तीनों ही भाई बड़े प्रतिभा सम्पन्न एवम् व्यापार चतुर पुरुष थे। भाप लोगों ने अपनी व्यापार चातुरी से फर्म की बहुत उन्नति की। यही नहीं बल्कि आपने गया, नाटोर, अडंगाबाद चापाई, नवाबगंज आदि स्थानों पर अपनी शाखाएँ स्थापित की। सेठ जैसराजजी का स्वर्गवास संवत् १९१७ में गया। आपके जयचन्दलालजी नामक पुत्र हुए। सेठ जयचन्दलालजा-आपका जन्म संवत् १९१२ में हुआ । छोटो वय से ही आप दुकान का काम करने लग गये थे। संवत् १९३९ तक इस फर्म पर खड़गसिंह लच्छीराम के नाम से व्यापार होता रहा ।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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