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________________ प्रोसवाल जाति का इतिहास तथा बदनमलजी हैं। भण्डारी मनमोहनचन्द जी का जन्म १९४३ में हुआ आप २० सालों से जोधपुर रेलवे में सर्विस करते हैं और इस समय बाड़मेर के स्टेशन मास्टर हैं। इनके पुत्र सुजानचन्दजी देहली में डेरी फॉमिंग का काम सीखते हैं। भण्डारी उगमचन्दजी २० सालों तक रेलवे में असिस्टेंट केशियर रहे। भण्डारी मगरूपचन्दजी का जन्म १९५७ में हुआ, इन्होंने १९७८ में एल० एल० वी की डिगरी हासिल की। १९८२ भाप हाकिम हुए । तथा सोजत विलाड़ा जोधपुर रहते हुए इस समय मेड़ते में है। भण्डारी दिलमोहनचन्दजी इस समय पोलिस अकाउंटेंट हैं, तथा बदनचन्दजी बी० ए० जोधपुर म्युनिसिपल इंस्पेक्टर ऑफ सेनिटेशन हैं। सेठ नंदलालजी भण्डारी का परिवार इन्दौर इस परिवार के पूर्वजों का मूल निवास स्थान नाडोल (मारवाड़ ) का है। सब से प्रथम चौहान वंशीय राजपूत यहीं से जैन बनकर ओसवाल भण्डारी के नाम से प्रसिद्ध हुए थे। आपके पूर्व पुरुष करीब २६० वर्ष पूर्व ब्यापार के निमित्त सीतामऊ गये, जहाँ पर यह खान दान करोब ६० वर्ष तक रहे । इसके पश्चात् भाप लोग सीतामऊ से होलकर राज्यान्तर्गत रामपुरा नामक नगर में आकर बसे, जहाँ पर आज भी आपकी हवेलियाँ पनी हुई है। इस परिवार में सेठ चरणजी बड़े नामादित हुए। सेठ चरणजी भण्डारी रामपुरा के प्रमुख व्यापारियों में से थे। उस समय आपका व्यापार खूब चमका हुआ था। परोपकार की तरफ भी भापकी काफी रष्टि थी। आपने जनता की सुविधा के लिये एक धर्मशाला तथा श्मशान में एक विश्राम गृह भी बनाया था जो आज भी अच्छी स्थिति में विद्यमान है। आपने केदारेश्वर में एक चौतरा भी बनवाया था। इस प्रकार के कई सार्वजनिक कार्यों में आपने हाथ पटाया । आपके पश्चात् सेठ पन्नालालजी तक के बंशजों की स्थिति साधारण रही । सेठ पचालालजी ७५ वर्ष पूर्व रामपुरा से इन्दौर जा बसे । माप लोगों का परिवार तभी से इन्दौर में ही निवास कर रहा है। - सेठ पनालालजी ने इन्दौर में जाकर अफीम और कपड़े का व्यापार करना आरम्भ किया। इसमें आपको अच्छी सफलता प्राप्त हुई। आपके नंदलालजी नामक एक पुत्र हुए। सेठ मंदलालजी हार्थो से इस फर्म की बहुत ही उमति हुई। आपने अपने जीवन में काफी सम्पत्ति, सम्मान तथा प्रतिष्ठा को प्राप्त किया। आप धीरे १ इन्दौर के धनिक ब्यापारियों में गिने जाने कगे। इतना ही नहीं इन्दौर दरबार में भी आपका समुचित सम्मान था। आप कई वर्षों तक इन्दौर-म्युनिसिपैलिटी के कार्पोरेटर तथा ऑनरेरी मजिस्ट्रेट के सम्मान से मी सम्मानित किये गये थे। सारे मध्यभारत के मोसवाल समाज में आपकी बहुत प्रतिष्ठा थी।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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