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________________ श्रीसवाल जाति का इतिहास सम्मान पाया ! महाराजा मानसिंहजी ने आपको पहले फौजबख्शी तथा पीछे दीवानगी के महत्व पूर्ण पद पर प्रतिष्ठित किया। आपकी सेवाओं के उपलक्ष्य में आपको दो हजार रुपयों की जागीरी भी प्राप्त हुई । संवत् १८९८ तक आप दीवानगी के पद पर रहे, वहाँ से रिटायर होकर आपने अपना शेष जीवन काशी में बिताया। वहीं आपका देहान्स हुआ । आपके भण्डारी शिवचन्दजी, कानचन्दजी और धरमचन्दजी नामक तीन पुत्र हुए। भण्डारी शिवचन्दजी महाराजा मानसिंहजी के समय में कई महकमों के अफसर रहे । मानसिंहजी के पश्चात् महाराजा तखतसिंहजी ने संवत् १९०२ में आपको दीवानगी का पद और पाँच हजार की जागीर बख्शी । संवत् १९०५ में आपका स्वर्गवास हो गया। इनके दीपचन्दजी और मोकमचन्दजी नामक दो पुत्र हुए । भण्डारी दीपचन्दजी ने महाराज जसवन्तसिंहजी के समय में कई स्थानों पर हुकूमतें कीं । आप स्टेट की ओर से ए० जी० जी० के आफिस में वकील भी रहे थे। संवत् १९३२ में दरबार ने आपको पैरों में सोना और २५००) की आय का एक गाँव भी जागीर में सरदारों के विद्रोह के समय आप महाराजा जसवन्तसिंहजी के साथ थे। से अच्छे सर्टिफिकेट प्राप्त हुए थे। आपका स्वर्गवास संवत् १९५० में हुआ । आपके भण्डारी जीतचन्दजी कल्याणचन्दजी, शिवदान चन्दजी और बल्लभचन्दजी नामक चार पुत्र हुए। भण्डारी शिवदानचन्दजी का जन्म संवत् १९४५ में हुआ । आप पहले प्रोबेशनरी हाकिम और उसके पश्चात् महकमा खास के कान्फ़ेडेन्शि यल महकमें में रहे । उसके पश्चात् आप कई स्थानों पर हाकिम रहे । सन् १९३१ में आप रिटायर कर दिये गये । आपके छोटे भाई वल्लभचन्दजी पाली, सांचोर आदि स्थानों पर हाकिम रहे। सन् १६३० में इनका स्वर्गवास हो गया । शिवदानचन्दजी के पुत्र श्यामचन्दजी और वल्लभचन्दजी के पुत्र सोनचन्दजी इस समय विद्याध्ययन कर रहे हैं । बख्शा था । संवत् १९३५ में आपको कई अंग्रेज अफसरों भण्डारी केशरीचन्दजी का परिवार - दीवान भण्डारी लक्ष्मीचन्दजी के छोटे भाई केशरीचन्दजी के मालमचन्दजी, मिलापचन्दजी नामक पुत्र हुए । मालमचन्दजी जोधपुर स्टेट में हाकिम रहे। इनके परिवार में इस समय इनके पौत्र भण्डारी जगदेवचन्दजी, शिवदेवचन्दजी तथा प्रपौत्र धमरूपचन्दजी विद्यमान हैं। भण्डारी मिलापचन्दजी तामील व षट्दर्शन के महकमे में काम करते थे । आपके पुत्र भण्डारी रिधैचन्दजी का जन्म संवत् १८८६ में हुआ। आप स्टेट की ओर से संवत् १९१३ में एरनपुरा के और १९१४ में उदयपुर वकील बनाकर भेजे गये । आपके कामों की तत्कालीन पोलीटिकल एजण्टों ने बहुत प्रशंसा की । इसके पश्चात् आप मारोठ और पचपदरा के हाकिम नियुक्त हुए। संवत् १९६२ में आपका स्वर्गवास हुआ। आपके दो पुत्र हुए । भण्डारी रघुनाथचन्दजी और भण्डारी अम्बाचन्दजी -भण्डारी रघुनाथचन्दजी १९५५ के फागुन में उदयपुर रेसिडेन्सी के वकील बनाकर भेजे गये। संवत् १९५७ में आपके शरीर का अन्त हुआ । १५६
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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