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________________ श्रीसवाल जति का इतिहास यहाँ तक कि डाकू लोग आपके नाम से कांपने लगे। आपने पाली, जालोर, भीनमाल आदि परगनों की हुकूमत की । सम्वत् १९०९ में आपका हणेन्द्र ( आबू ) नामक स्थान पर स्वर्गवास हो गया। आपके छोटे भाई निःसन्तान स्वर्गवासी हुए । भंडारी श्रीचंदजी - आप राजनीतिज्ञ और कार्य्यं कुशल व्यक्ति थे। महाराजा मानसिंहजी ने पहले आपको नागोर की हुकूमत पर भेजा। इसके पश्चात् आपने क्रमशः आबू वकीली, दीवानी और फौजदारी अदालत की जजी, फौज मुसाहबी आदि कई बड़े पदों पर सफलता पूर्वक कार्य किया । आपके काव्यों से प्रसन्न होकर महाराजा साहब मे आपको हज़ार रुपये सालाना की जागीर के गांव, तथ खास रुक्के इनायत किये। इसके अतिरिक्त आपको पालकी, छड़ो और मोहर की इज़त भी प्राप्त थी । आप मूर्ति पूजक सज्जन थे । आपने जोधपुर से तीन चार मील की दूरी पर अपनी कुलदेवी आसापुरी का, तथा मंडोवर में हनुमानजी का मन्दिर बनवाया था। आपका स्वर्गवास संवत् १९१५ में हो गया। आपके बख्तावरमलजी, सुमेरचन्दजी, हणवंतचंदजी और बलवंतचंदजी नामक चार पुत्र हुए 1 भण्डारी बख्तावरमलजी ने अदालत दीवानी का काम किया। आप साधु प्रकृति के सज्जन थे । आपको पालकी, सिरोपाव का सम्मान प्राप्त हुआ था । आपका स्वर्गवास संवत् १९५३ में हो गया । आपके दौलतचंदजी मंगलचंदजी और बिरदीचंदजी नामक तीन पुत्र थे। पहले दौलतचंदजी मारवाड़ के कई जिलों में सायर दरोगा रहे। दूसरे मंगलचंदजी सोजत, परबतसर आदि परगनों पर हाकिम रहे । आप दोनों का स्वर्गवास हो गया । भण्डारी सुमेरचंदजी गदर के समय में दरबार की ओर से आऊवे ठिकाने पर फौज लेकर गये थे। ये कई स्थानों के हाकिम रहे। आपके पुत्र सरूपचंदजी नावा और पाली के हाकिम रहे। आपका स्वर्गवास हो गया है । आपके पुत्र गौरीचंदजी इस समय घरू व्यापार करते हैं। इनके पुत्र शमशेरचंदजी बी० ए० पास हैं । मंडारी हणवंत चंदजी - आपका जन्म संवत् १८९२ में हुआ । महाराजा तख़्तसिंहजी की आज्ञानुसार आपकी फारसी की पढ़ाई महाराज कुमार जसवंतसिंहजी के साथ हुई। सर्व प्रथम संवत् १९११ में आप पाली की हुकूमत पर भेजे गये। गदर के समय में आपने कई युरोपियनों की जानें बचाई। इसके बाद आपने क्रमशः अदालत दीवानी, नागौर और मारोठ की हुकूमत वकाळात रेसीडेंसी, कालात आबू, भदालत अपील आदि स्थानों पर कार्य किया । आप बड़े प्रतिभाशीक व्यक्ति थे । आप मेम्बर कौंसिल भी रहे। उस समय आपको ४००) मासिक वेतन मिलता था। आपको महाराजा साहब ने पालखी, सिरोपाव, छड़ी और मोहर प्रदान कर सम्मानित किया था। आप निर्भयचित और सर्व व्यक्ति 149
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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