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________________ महाडी भंडारी महाबु रमलजी - आप भण्डारी प्रतापमलजी की पांचवीं पीढ़ी में हुए, भपका जन्म १८७३ में हुआ महाराजा तस्वतसिंहजी के समय में इनका बड़ा प्रभाव और जोर था, इनके सम्बन्ध में उस समय कहावत थी कि......" बारे नाचे बादरियो - मां, नाचे नाजरियो” । ये सम्वत् १८९६ से १९४२ तक जोधपुर स्टेट में हाकिम सायर, खासा खजाना, हुजूर दफ्तर, अन्न कोठार के दारोगा और साल्ट विभाग के सुपरिटेण्डेण्ट पद पर रहे। संवत् १९३२ में साल्ट सुपरिंटेन्डेण्ट पद पर सर्विस करते समय ३ हजार की रेख का हरडाणी नामक गाँव आपको जागीरी में मिला। आपको महाराजा तखतसिंह ने प्रसन्नता के कई रुक्के दिये थे । आप कट्टर तेरापंथी आम्नाय के मानने वाले महानुभाव थे । आपको १८८३ में नागोर का गाँव सिलारिया जागीरी में मिला । आपका संवत् १९४२ में स्वर्गबास हुआ । नाम से भंडारी किशनमलजी - आप भण्डारी बादरमलजी के पुत्र थे । आप खजाने वाले भण्डारीजी के मशहूर थे । आप पहले हाकिम, एन कोठार, और बागर आफ़िसर रहे । पश्चात् संवत् १९४२ से १५ सालों तक खासा खजाना के आफ़िसर रहे । आप से जोधपुर दरबार तथा महाराज प्रतापसिंहजी बहुत खुश रहे। इनकी जमाखर्च की जानकारी प्रशंसनीय थी। कविता करने का आपको बड़ा प्रेम था, आपने बहुत रुपया खर्च कर मारवाड़ की पुरानी तवारीख का संग्रह किया तथा गद्य और पद्य में मारवाड़ के ताजिमी सरदारों की तवारीख लिखी । आपको पालकी और सिरोपाव प्राप्त हुआ था। आपका स्वर्गवास संवत् १९६२ में हुआ | आपके पुत्र माधोमलजी का छत से गिर जाने से अन्तकाल हो गया । आपके नाम पर आपके छोटे भ्राता मानमलजी दत्तक लिये गये, इनका भी स्वर्गवास हो गया अतएव इनके नाम पर भण्डारी जोरावरमलजी के पुत्र जबरमलजी दत्तक लिये गये। इस समय भण्डारी जवरमलजी विद्यमान हैं। इनके नाम पर अपने पूर्वजों के गाँव सिलारिया की जागीरी बहाल रही । भण्डारी जवरमलजी ने इस वर्ष बी० ए० एक एल० बी की डिगरी हासिल की। आपको जोधपुर दरबार से "कैफियत और जी कारा" प्राप्त है । भण्डारी अखेराजजी प्रयागराजजी ( मेसदासोत ) जोधपुर मेसदासोत भंडारी भी भंडारियों की एक शाखा है जिसकी उत्पत्ति कल्याणदासजी के दूसरे पुत्र तथा भंडारी कुशलचंदजी के बड़े भ्राता मेसदासजी से हुई है। जब महाराजा अभयसिंहजी ने इनके बड़े भ्राता भण्डारी अनोपसिंहजी को चूक करवाया उस समय ये अपने भाइयों के पुत्रों को लेकर देहली चले गये थे । वहाँ बादशाह ने इन्हें खानसामाई का काम दिया। कुछ समय पश्चात् नागोर के राजा रामसिंहजी ने इन्हें अपने पास बुलवा लिया एवम् संवत् १७७२ में अपना दीवान नियुक्त किया। जब संवत् १८०८ में १५१
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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