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________________ श्रीवास जाति का इतिहास भण्डारी भवानीरामजी के पश्चात् उनके परिवार के व्यक्तियों का सिलसिलेवार कुर्सी नामा नहीं प्राप्त होता, पुष्कर में भण्डारियों के पण्डे की बही में देखने से हमें भण्डारी भवानीरामजी के पुत्र भण्डारी आसारामजी के होने का पता चलता है। अस्तु । अनुमान किया जाता है कि सोजत के भण्डारी पृथ्वीराजजी भण्डारी गंगारामजी के भतीजे थे। मंडारी पृथ्वीराजजी - भण्डारी अभेमलजी के तीसरे पुत्र भण्डारी पृथ्वीराजजी थे । इन्होंने भी जोधपुर राज्य के लिये कई बहादुरी के काय्यं किये। इनका निवास सोजत में था । संवत् १८६४ में इनको सोजत का सरवादारा नामक गांव जागीर में मिला। जब जोधपुर पर जयपुर और बीकानेर की फौज़ों में संवत् १८६४ में चढ़ाई की। उस समय मीरखां को faureर सिंघवी डम्मराजनी, कुचामन ठाकुर शिवनाथसिंहजी तथा भण्डारी पृथ्वीराजजी ने जयपुर पर चढ़ाई की थी। जब जयपुर विजय के समाचार जोधपुर पहुंचे थे, उस समय महाराजा मानसिंहजी ने भण्डारी पृथ्वीराजजी के नाम एक रुक्का भेजा था कि : भंडारी पृथ्वाराज दिसे सुप्रसाद बांचजो, तथा श्रीजीरा इकबाल सुं बंदगी तू आधी पोहतो. जस बंदर्गारो आायोः हाल सुदी जेपुर वाला श्रठा सुं कूंच मोरचा उठाय कियोः अबे थारी मारग में हलकारांरी साबधानी राख श्राछी रीत समाधानरी तजवीज करेः संवत् १८६४ रा भादवा सुदी १४ संवत् १८६५ के फाल्गुन में भण्डारी पृथ्वीराजजी फलोदी खाली कराने के लिये भेजे गये । उमरकोट के युद्ध में सिंघवी गुलराजजी के साथ आप भी भेजे गये थे । संवत् १८७९ में आपको खरवाण ( भाद्राजण ) नामक गाँव जागीरी में मिला । कहा जाता है कि एक समय मीरखां ने सोजत को लूटने के इरादे से हमला कर दिया । कारण कि उस समय सोजत भींवराजोत आदि सिंघवियों का निवास स्थान था । ऐसे समय मीरखां के पगड़ीबंद भाई भण्डारी पृथ्वीराजजी ने मीरखां से कहा कि "खुशी की बात है कि भाज तुम सोजत लूटने भाये हो। पहिले अपने दलबल समेत चलकर अपने भाई का घर लुटको तथा फिर सारी सोजत का माल लूटना" मीरखां ने अपने पगड़ी बन्द भाई का घर लुटमा उचित न समझा तथा वहाँ से फूँच किया। इस प्रकार सोजत लुटी जाने से बच्ची । सोजत से भागे जाकर उसने सिरिमारी पर धावा मारा, जहाँ मुत्सुहियों की बहुत-सी छिपी हुई सम्पत्ति उसके हाथ लगी । संवत् १८८० की जेठ सुदी ९ के दिन भण्डारी पृथ्वीराजजी जालोर के समीप युद्ध करते हुए मारे गये । इनकी धर्मपत्नी इनके साथ सती हुई। जालोर के हरजी नामक स्थान में और सोजत में इनकी छतरी बनी हुई है। इनके पुत्र फौजमजी हुए । 194
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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