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________________ बासवान जाति का इतिहास सम्वत् 10 मासोग मास में भण्डारी सीवसीजी और सैपदों के वजीर राजा रखचन्द शाहजादों में से मवे बादशाह को चुनने के लिए पिछी भेजे गये । २२ व सुन्दर नवयुवक साहजादे महम्मदशाह ने इनकी रष्टि को विशेष रूप से अपनी गोर आकर्षित किया। कहने की आवश्यकता नहीं कि इन्होंने महम्मदशाह को पसंद कर लिया पर महम्मदशाह की माता मंजूर नहीं हुई । उसने समझा कि पादशाह बनने से जो गति पहिले दो तीन बादशाहों की हुई वही महम्मदशाह की भी होगी । इस पर सीवतीजी ने महम्मदशाह की माता को बहुत समझाया और उसे हर तरह की तसल्ली दी। इतना ही नहीं उन्होंने इष्टदेव की सौगन्ध खाकर महम्मदशाह जीवन रक्षा की सारी जिम्मेदारी अपने सिर पर ली। इस पर महम्मदशाह की माता राजी हो गई। कहने की आवश्यकता नहीं कि सीवसीजी महम्मदशाह को ले आये और जब वह दिल्ली के तख्त पर बैठा तब उसका एक हाथ महाराजा अजितसिंहजी के हाथ में और दूसरा हाथ नवाब अब्दुल्लाखों के हाथ में था। सुप्रसिद्ध इतिहासवेता विलियम इहिन ने भी भण्डारियों द्वारा बादशाह के चुने जाने की बात का उस्लेख किया है। इस समय महाराजा अजितसिंहजी का बादशाह पर जो अपूर्व प्रभाव पड़ा उसका भनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। इसके बाद खींवसीजी ने प्रयत्न कर अपने स्वामी जोधपुर परेश केलिए बादशाह से राजराजेश्वर की पदवी प्राप्त की। इसी समय महाराजा ने भण्डारी सीवसीजी को दिछी लिखा कि "हिन्दुस्थान की हिन्दू प्रजा पर जिजीया कर लगता है। किसी तरह यक्ष कर उसे माफ करवाना। भण्डारी खींवसीजी ने महाराजा की या इन्छा बादशाह पर प्रकट की। उन्होंने बादशाह को जिजिया के भयर खतरे बत लाये। बादशाह को भण्डारी खींवसीजी की युति जंच गई और उन्होंने जिजिया कर माफ कर दिया। इस प्रकार भण्डारी खींवसीजी ने अपनी कुशल गीति से सारे भारतवर्ष में हिन्दू प्रजा का असीम कल्याण इन दिनों मारी सीकसी को बादशाह के पास कुछ अधिक दिनों तक रहने का काम पड़ा। बादसाह इनकी राजनीतिज्ञता और कार्यकुशलता से बड़ा प्रभावित हुआ। बादशाह महम्मदशाह की ओर से जोधपुर बरेत की तरफ का सिरोपाव मण्डारी खींवसीजी को हुमा । यह बात जयपुर नरेश जयसिंहजी को कमी न लगी। इसके बाद जब भण्डारी खींवसीजी ने सीख ली तब फिर उन्हें तथा उनके साथ काले १९ उमरावों की बारमाह की ओर से कोमती पोशाकें मिली । इसके बाद खींवसीमी ने जोधपुर भाकर महाराजा अजितसिंहजी से मुजरा किया । महाराजा ने आपका बड़ा सत्कार किया और कहा कि मुत्सदी से तो ऐसा हो जिसने मेरी ऐवजी माम बारमाह से करवा लिया। Later Moghuls Vol. 1 Page 388.
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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