SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 497
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मण्डारी मारवाड़ के इतिहास के भण्डारियों के गौरवान्वित कार्यों से. प्रकाशमान हो रहे हैं । भण्डारियों की कास्यांवली का विवरण राजस्थान के इतिहास में एक अभिमान की वस्तु है। मारवाद के इतिहास में भण्डारियों का एक विशेष युग रहा है और उन्होंने अपने समय में न केवल मारवाद की राजनीति ही को सञ्चालित किया परन् उन्होंने वकालीन मुगलसाम्राज्य की नीति पर भी अपना विशेष प्रभाव गला है। दुःख है कि इस गौरवशाली वंश का क्रमबद्ध इतिहास उपलब्ध नहीं है। मारवाड़ की विभिः स्यातों, अंग्रेजी, संस्कृत गौर फारसी के प्रामाणिक इतिहास ग्रन्थों में भण्डारियों के इतिहास की सामग्री बिखरी हुई है, उसी के माधार से उनके इतिहास पर कुछ प्रमश गला जा रहा है। ... भयडारी वंश की उत्पत्ति-इस वंश की उत्पत्ति नाडौल के चौहान राजवंश से हुई है। विक्रम सात् की ग्यारहवीं सदी में नाडौक में राव लाखणसी नामक एक प्रतापशाही राजा हुआ। यह शाकमदी (साम्मर) के चौहानवंशी राजा वावपतिराज का पुत्र था। इसका शुद्ध नाम लक्ष्मण था। अचलेश्वर के मन्दिर में लगे हुए सम्बत् १३०७ के लेख से मालूम होता है कि लाखणसी ने अपने बाहुबल से नाडोल के इलाके पर नवीन राज स्थापित किया। इसके समय के विक्रम सम्बत् १०२४ और १०३९ के दो शिलालेख कर्नल टॉड साहब को मिले थे। कर्नल टॉड लिखते हैं: ___ "चौहानों की एक बड़ी शाखा नाडोल में आई, जिसका पहिला राजा राव लाखण था। उसने सम्बत् १०३९ में अगहिलवाड़े के राव से यह परगना छीन लिया। गजनी के बादशाह सुबुकगीन व उसके पुत्र सुलतान महम्मद ने राव लाखण पर चढ़ाई करके नाडोल को लूटा और वहां के मन्दिर तोड़ डाले। लेकिन चौहानों ने फिर वहाँ पर अपना दखल जमा लिया। यहाँ से कई शाखाएँ निकली, जिन सबका मन्त देहली के बादशाह अल्लाउद्दीन खिलजी के वक में हुआ। राव लाखण अनहिलवादे तक का दाण (सायर का महसूल) लेता था और मेवाड़ का राजा भी उसे खिराज देता था" * राय राव राखण द्वारा मेवा के राजा से खिराज लिये जाने की पुष्टि निम्न लिखित पुराने दोहे से भी होती है। समय दस से उँचालिश वार एकता पाटणा पोला पेप दाण चौहाण उगालीमेवाड़ पणि दराड मरी तिसबार राब लाखण थपी, जो प्रारम्मा सो करि
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy