SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 491
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिंघवी सिंघवी दोलतसिंहजी के तीसरे पुत्र मालजी के परिवार में सिंघवी कस्तूरचन्दजी ने संवत् १९३९, १९२५, और १९३२ में सिरोही स्टेट की दीवानगी का काम किया। इन्हीं मालजी के दूसरे पुत्र माणक. चन्दजी के परिवार में राय बहादुर जवाहरचन्दजी बड़े नामादित हुए। आप संवत् १९४८,५५ और ५९ में क्रमशः तीनवार सिरोही स्टेट के दीवान रहे। संवत् १९५६ के भकाल में आपने गरीबों की बहुत सेवाएँ की, इसके उपलक्ष्य में गवर्नमेण्ट की ओर से भापको “राय बहादुर" का सम्माननीय खिताब प्रास हुआ। आपका स्वर्गवास संवत् १९६० में हुमा । आपके छः पुत्र हुए जिनमें सिंघवी नरसिंहमलजी और हजारीमलजी विद्यमान है। शेष चार पुत्रों के वंशज भी इस समय विद्यमान है। सिंघवी दौलतसिंहजी के चौथे पुत्र फतेचन्दजी के परिवार में सिंघवी पूनमचन्दजी हुए, आप १७ वर्षों तक सिरोही स्टेट में रेवेन्यू कमिश्नर रहे। गवर्नमेण्ट की ओर से भापको राय साहब का सम्मानीष खिताब प्राव हुआ । आपका स्वर्गवास संवत् १९४२ में हुआ। इनके समरथमलजी, भभूतमरूजी और दुनिचन्दजी नामक तीन पुत्र हैं। श्री भभूतमलजी (बी० पी० सिंघई ) बड़े उत्साही, धार्मिक, विक्षित और साहित्य प्रेमी सज्जन हैं। सार्वजनिक कार्यों में आप बड़ी दिलचस्पी से भाग लेते हैं। मापके छोटे भाई दुलिचन्दजी एप्रिकल्चर कॉलेज पूना में पड़ते हैं। . . ___सिंघवी सामजी के तीसरे पुत्र सिंघी विजयराजजी के नेमचन्दजी और केसरीमलजी नामक दो पुत्र हुए। इनमें नेमचन्दजी का परिवार पाली और घाण में निवास करता है । केसरीमलजी के परिवार में क्रमशः प्रेमचन्दजी, किशनजी, जेठाजी और हिन्दूमलजी हुए। इनमें सिंघवी जेठाजी बड़े धनाढ्य व्यक्ति थे। सिंघवी हिन्दूमलजी के पुत्र रूपचन्दजी, हँसराजजी और ताराचन्दजीथे । सिंघवी रूपचन्दजी पोस्टल विभाग के डेड लेटर आफिस राजपूताना में मैंनेजर रहे । सिंघवी हंसराजजी २५ सालों तक पोस्ट मास्टर रहे। सिंघवी रूपचन्दजी के मूलचन्दजी, खेमचन्दजी और हिम्मतमलजी नामक तीन पुत्र हुए। इनमें सिंघवी खेमचन्दजी हंसराजजी के नाम पर और हिम्मतमलजी ताराचन्दजी के नाम पर दत्तक गये। सिंघवी खेमचन्दजी का जन्म १९४१ में हुआ और सन् १९०८ में आपने एम० ए० की डिग्री हासिल की। सिरोही स्टेट में आप सब से पहले एम० ए० हैं। प्रारम्भ में आप सिरोही सेटलमेण्ट आफिसर मिकीन के परसनल असिस्टेण्ट रहे व उसके पश्चात् असिस्टेण्ट सेटलमेण्ट ऑफिसर होकर रेवेन्यू कमिइनर हुए। आपको महाराव केसरीसिंहजी व कई अंग्रेज असफरों ने अच्छे २ सार्टीफिकेट दिये। वाइससबके आर्डर से तत्कालीन ए० जी० जी० आग्मी डिपार्टमेन्ट ने आपके कार्यों की गजट ऑफ इण्डिया में बहुत प्रशंसा की सन्१९२४ से १९२९ तक आप जोधपुर स्टेट में लेण्ड और रेहेन्यू सुपरिटेण्डेण्ट रहे । इस समय भाप माबू वेलबादा जैन टैम्पल और बामनवादजी जैन टैम्पल की मैनेजिंग कमेटी के प्रेसिडेण्ट हैं। आपके छोटे
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy