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________________ भोसवाल जाति का इतिहास इनके बड़े भाई बनेचन्दजी और बड़े पुत्र हरकचन्दजी भी मरवा दिए गये। बाद भेद खुलने पर पासवानजी बहुत पछताई। ___ सिंघवी जीतमलजी और उनके बन्धु-सिंघवी जोरावरमरूजी के फतेमलजी, सूरजमलजी, केसरीमलजी, जीतमलजी, शम्भूमलजी और अणंदमलजी नामक ६ पुत्र हुए। जब कुंवर भीमसिंहजी ने अपने पिता महाराज विजयसिंहजी के जीतेजी ही जोधपुर पर अपना आधिपत्य जमाया, उस समय मारवाड़ के अधिकांश सरदार उमराव, कुँवर भीवसिंहजी की मदद पर थे। जब भीवसिंहजी अपने भाइयों और भतीजों को मरवाने की कोशिश कर रहे थे, उस समय पासवानजी ने कुँवर शेरसिंहजी और महाराज कुमार मानसिंह जी को जालोर लेजाने के लिए सिंववी जीतमलजी और उनके बन्धुओं से कहा । इसपर जीतमल. जी, फतेमलजी, शिम्भूमलजी और सूरजमलजी कुँवरों को लेकर जालोर दुर्ग चले गये। इसके दो दिन बाद ही भीवसिंहजी ने पासवाननी को मरवा डाला और सिंघवी जीतमलजी की हवेली लुटवा दी। महाराज विजयसिंहजी के विजयी हो जाने पर शेरसिंहजी जालौर से वापस चले आये और मानसिंहजी वहीं रहने लगे। फिर जब महाराजा विजयसिंहजी भी स्वर्गवासी हो गये और भीवसिंहजी ने जोधपुर पर अपना अधिकार जमा लिया, उस समय मानसिंहजी का अधिकार केवल जालोर और उसके समीपवर्ती परगनों पर ही रह गया था। इस समय इनके दीवान सिंघवी जीतमलजी बनाये गये थे। ऐसी स्थिति में भीमसिंहजी ने जालोर के चारों ओर घेरा डलवा दिया जिससे मानसिंहजी बड़ी कठिनाई में पड़ गये। मानसिंहजी की इस विकट स्थिति में सिंघवी शम्भूमलजी इधर उधर से लूट खसोट कर रसद आदि सामान जालोरगद को पहुँचाते रहे। इतना ही नहीं, इधर-उधर से सेना इकट्ठी करने और भीवसिंहजी की फौजों को खदेड़ने का काम भी ये ही सिंघवी बन्धु करते थे। ऐसी विपत्ति के समय में मदद पहुंचानेवाले सिंघवी बंधुओं को मानसिंहजी ने अनेक रुक्के आदि देकर इनकी स्वामि भक्ति की बड़ी प्रशंसा की थी, इन रुक्कों में से कुछ हम नीचे उद्धत करते हैं। श्री रामजी सिंघवी जीतमल सँ म्हारो जुहार बांचंने यूँ मारेघेणी बात छे फौजरा खरच वरच री ने काम काजरी मोकली थारा जीवने अदाछे पिण करा कऊँ अठे खजानो होवे तो थने फोड़ा पड़न देवां नहीं जोधपुर तूं ही यूँ लेने आयो छे ने सारो ही कामकाज था निबियो है ने ह मेही सारो कामकाज थारे भरोसे छे थारी चाकरी थाने भरदेसां ने था 1 कदे उसरावण हुसां नहीं श्री जालंधरनाथ सारी बात बाछी करसी । फतमल अणंदमल मारी मरजी माफक बंदगी करे के। सम्वत १८५० राजेठ वदी३ ९८
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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