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________________ सिंघवी बनाये गये । सं० १८९८ में इन्हें दीवानगी का पद इनायत हुला। इन्हें पालकी और सिरोपाव का सम्मान मिला था। संवत् १९०३ में इनका स्वर्गवास हुभा। इनके समर्थराजजी, सांवतराजजी, मगमराजजी और छगनराजजी चार पुत्र हुए। सिंघवी कुशलराजजी के पुत्र सिंघवी रतनराजजी परवतसर और मारोठ के हाकिम रहे इनका स्वर्गवास संवत् १९२० की काती वदी ४ को हुआ। इनके पुत्र सिंघवी जसराजजी मेडते के हाकिम थे इनके पैरों में सोना था। इनके यहाँ भभूतराजजी दत्तक भाये है। सोजत परगने का शेखावास गाँव इनकी जागीर में है। ___ सिंघवी सुखराजजी के पुत्र सिंघवी समरथराजजी संवत् १८९४ से १९१५ तक हाकिम रहे, बीच में ये जोधपुर के वकील की हैसिपत से एजण्ट के पास भी रहे थे । . संवत् १९२९ में ये फौजबख्शी हुए। इन्होंने संवत् १९३. में जयपुर में अपने पिता की छतरी की प्रतिष्ठा की। इनके सूरजराजजी और मुरूहराजजी नामक दो पुत्र हुए। सोजत जिले का पला गांव इनकी जागीर में था वह भव भी इनके वंशजों के पास है। महाराज तखतसिंहजी ने मापने पैरों में सोना, तालीम और हाथी बस्सा था। इनके पुत्र सूरजरामजी का देहान्त इनकी मौजूदगी में हो गया। ___ सिंघवी करणराजजी सिंघवी सूरजराजजी के पुत्र थे । संवत् १९११ में इनें बसीगिरी इनायत हुई और संवत् १९३४ में इनका स्वर्गवास हो गया। इनको भी महाराज जसवन्तसिंहजी ने सोना, साजीम और सिरोपाव बख्शा था। इनके गुजरने पर इनके दत्तक पुत्र किशनराजजी को भी वही इज़त मिली। किशनराजजी को संवत् १९३४ में बख्शीगिरी मिली। बाद में संवत् १९४९ से आप परवतसर और नागौर के हाकिम रहे। नागौर से इनके पुत्र हंसराजजी और परवतसर में इनके भतीजे दौलतराजजी हुकुमत का काम करते थे और आप दोनों स्थानों पर निगरानी रखते थे। आपका स्वर्गवास संवत् १९७३ में हुआ। आपके पुत्र सिंघवी हंसराजजी हुए बो सिंघवी अमृतराजजी के नाम पर दत्तक गये। ___ सिंघवी सुखराजजी के दूसरे पुत्र मगनराजजी के नाम पर समरथराजजी के छोटे लड़के सुलहराजजी दत्तक लिये गये। इनका स्वर्गवास संवत् १९६५ की जाती सुदी ४ को हुआ। इनके पुत्र रूपराजजी कोलिया और सांचोर के हाकिम थे। इन्हें भी पालको और सिरोपाव हुआ। संवत् १९८७ में इनका स्वर्गवास हुआ, इनके पुत्र दूलहराजजी अमी विद्यमान हैं। सिंघवी सुखराजी के तीसरे पुत्र सांवतराजजी का स्वर्गवास संवत् १९२६ में हुभा । इनके सिंघवी बछराजजी और अमृतवानी दो पुत्र हुए।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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