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________________ बोसवाल जाति का इतिहास १९९९ में जोधपुर के हाकिम बनाये गये। इनको दरबार से पैरों में सोना, हाथी और सिरोपाच बरक्षा पा था। इनके पुत्र प्रयागराजजी को भी पैरों में सोना बस्या हुआ है। सिंघवी इन्द्रराजजी सिंघवी इन्द्रराजजी उन महापुरुषों में से थे, जो अपने अद्भुत और आश्चर्यजनक कार्यों से सारे खानदान के नाम को चमका देते हैं, और इतिहास के अमर पृठों पर बलात् अपना अधिकार कर लेते हैं। शुरू-शुरू में सिंघवी इन्द्रराजजी पचभदरा और फलौदी के हाकिम रहे। संवत् १८५९ में अब कई सरदारों ने मिलकर दीवान जोधराजजी का सिर काट लिया, तब महाराजा भीमसिंहजी ने इन्द्रराजजी को फौज देकर उन सरदारों से बदला लेने को भेजा । उन्होंने जाकर उन सब सरदारों को दण्ड दिया और उनसे हजारों रुपये वसूल किये। संवत् १८६० की कार्तिक सुदी ४ को जब महाराज भीमसिंहजी का स्वर्गवास हो गया और राज्य का अधिकारी महाराजा मानसिंहजी के सिवाय दूसरा कोई न रहा उस समय जोधपुर से पाय भाई शम्भूदान जी, मुणोत ज्ञानमलजी तथा भण्डारी शिवचंदजी ने सिंघवी इन्द्रराजजी और उनके मामा भण्डारी गंगारामजी को लिखा कि "महाराजा भीमसिंहजी परम धाम पधार गये हैं और ठाकुर सवाईसिंहजी पोकरन है उनके आने पर तुम्हें लिखेंगे तुम अभी घेरा बनाए रखना," पर सव परिस्थितियों पर विचार करके इन्होंने महाराज मानसिंहजी को जोधपुर जाना उचित समझा भौर इसी अभिप्राय से अमरचंदजी छलवानी को मानसिंहजो के पास गढ़ में भेजा और स्वयं भी जाकर निछरावल की ओर घेरा उठा दिया । संवत् १८६० की मगसर वदी ७ को आपने जोधपुरवालों को लिखा कि राज्य के अधिकारी मानसिंहजी ही हैं। ये बड़े महाराज की तरह सब पर दया रखेंगे। मैं इनका रुका सबके नाम पर भेजता हूँ । जब महाराजा मानसिंहजी जोधपुर के गढ़ में दाखिल हो गये तब उन्होंने प्रसन्न होकर भण्डारी गंगारामजी को दीवानगी और सिंघवी इन्द्रराजजी को मुसाहिबी इनायव की। इसके सिवाय मेघराजजी को बख्शीगिरी और कुशलराजजी को सोजत की हाकिमी दी। इसी समय महाराजा ने सिंघवी इन्द्रराजजी को एक अत्यन्त महत्वपूर्ण रुका इनायत किया जो इस ग्रन्थ के राजनैतिक महत्व नामक अध्याय में हम प्रकाशित कर चुके हैं। संवत् १८६३ में किसी कारणवश महाराजा मानसिंहजी सिंघवी इन्द्रराजजी और भण्डारी गंगारामजी से नाराज हो गये और इन दोनों को इनके भाई बेटों सहित कैद कर दिया । संवत् १८६३ के फाल्गुन में जोधपुर के कई सरदार धौंकलसिंहजी को * गही दिलाने के उद्देश्य • जब महाराणा भीमसिंहजी स्वर्गवासी हुए तन उनकी रानी गर्भवती थी, महाराज की मृत्यु के बाद उनके पुषमा जिसका नाम भौंकलसिंह रक्खा गया था।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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