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________________ बोलबाल जाति का इतिहास हेमराजजी मुहणोत नागोर से दत्तक लाये गये। आपके दत्तक आने पर पञ्चों ने फैसला कर सेठ हजारीमलजी मुहणोत की कन्या मैना बाई तथा आपके हिस्से से १० हजार रुपया मन्दिर बनवाने के अर्थ निकाले । फलतः सेठ हेमराजजी मुहणोत ने संवत् १९७८ में एक इवे. जैन मन्दिर का निर्माण कराया। आपने भी दुकान के व्यापार तथा प्रतिष्ठा को अच्छी उन्नति प्रदान की। संवत् १९८७ में आपने नोपतजी की ओली का उपना तथा साध्वीजी रतनश्रीजी का चतुर्मास कराया। इस समय आपके यहाँ इटारसी में छोगमक हजारीमल मुहणोत के नाम से सराफी तथा बेकिंग कारबार होता है। सेठ रतनचन्द छगनमल मुहणोत, अमरावती लगभग संवत् १९२० में सेठों की रीयां नामक स्थान से व्यापार के निमित्त सेठ हुकमीचन्दजी मुहणोत के पुत्र मानमलजी, गुलाबचन्दजी, तखतमलजी और बस्तावरमलजी ने दक्षिण प्रांत के केलसी (रत्नागिरी) नामक स्थान में जाकर दूकान की। थोड़े समय बाद सेठ मानमलजी और गुलाबचन्दजी दोनों भाइयों ने लछमनदासजी मुहणोत की भागीदारी में अमरावती में दूकान की । सेठ लछमनदासजी मुहणोत संवत् १९३३ में रीयों से अमरावती आये । सेठ मानमलजी के नवलमलजी तथा धनराजजी नामक दो पुत्र हुए, इनमें धनराजजी को मुलाबचन्दजी के नाम पर दत्तक दिया। मुहणोत नवलमलजी ने संवत् १९५१ में बम्बई तथा गुलेजगुड़ में दूकाने की। इनके रतनचन्दजी, चांदमलजी तथा सूरजमलजी नामक तीन पुत्र हुए, जिनमें रतनचन्दजी, तखतमलजी के नाम पर दत्तक गये। मुहणोत धनराजजी के पुत्र पनराजजी और मगनमलजी तथा रतनचन्दजी के पुत्र छगनमलजी और फतेचन्दजी हुए। इन भ्राताओं में सेठ मगनमलजी और फतेचन्दजी का व्यापार सम्मिलित है। मुहमोत भीकमचन्दजी ने रीयां में एक धर्मशाला और कबूतरखाना बनवाया है। भाप लछमनदासजी के नाम पर इसक आये हैं। इस समय सेठ मगनमलजी तथा फतेचन्दजी का व्यापार अमरावती में रतनचन्द छगनमल के नाम से, गुलेजगुड़ में धनराज मगनमल के नाम से, अंजाका (रत्नागिरी ) में मानमल गुलाबचन्द के नाम से तथा केलसी (रत्नागिरी) में नवळमल चांदमल के नाम से होता है।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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