SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 433
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुहणोत सेठ लछमणदासजी मुहणोत रीयांवालों का परिवार, कुचामण इस परिवार का मूल निवास स्थान रीया है। रीयों के नगरसेठ जीवनदासजी अपने समय के मामी गरामी श्रीमंत थे। आपका विस्तृत परिचव उपर दिया जा चुका है। सेठ जीवनदासजी के गोवईनदासजी, रघुनाथदासजी तथा हरजीमलजी नामक तीन पुत्र हुए। संवत् १८९५ में सेठ हरजीमलजी के पुन मुहणोत लछमणदासजी रीयाँ से देवगढ़, किशनगढ़ आदि स्थानों में होते हुए कुचामण भाये और वहीं आपने अपना निवास बनाया। ___ मुहणोत रघुनाथवासनी के पौत्र रामदासजी तथा लछमणदासजी पर जोधपुर दरबार महाराणा मानसिंहजी बड़ी कृपा रखते थे। राज्य के साथ इनका लेनदेन उस समय बड़े परिमाण में होता था इनकी मातवरी से खुश होकर दरवार ने इन्हें कई खास रुक्के भी इनायत किये थे। जोधपुर दरबार ने पालकी, सिरोपाव, कड़ाकंठी, मोती, दुपट्टा, कीनसाव वगैरा समय-समय पर प्रदान कर इस परिवार की इजत की थी। साथ ही इन भ्राताओं के लिये मारवाद में बहुत-सी लागें भी बंद कर दी थीं। इसी प्रकार रामदासजी तथा लछमणदासगी को भी उदयपुर सरकार से म्वापार करने के लिये गाये महसूल की माफी के पत्र मिले थे । इस परिवार ने मेवाड़ प्रान्त में भी अपनी दुकानें स्थापित की थी। संवत् १८७७ की काती वदी १३ को रामदासजी तथा लछमणदासजी का कारवार अलग-अलग हुमा । इस प्रकार प्रतिष्ठामय जीवन बिताते हुए सेठ लछमनदासजी का संवत् १८९९ की जेठ सुदी ४ को स्वर्गवास हुआ। सेठ लछमणदासजी के पुत्र फ्तेमाजी संवत् १९०९ की भासोज सुदी १० को गुजरे । सेठ फतेमलजी के नाम पर नीमाली से सेठ धनरूपमलजी मुहणोत दत्तक लाये गये, इनके समय में अजमेर, जयपुर तथा सांभर में दुहने रहीं। संवत् १९५३ को माघ सुदी १० को इनका शरीरान्त हुआ। इनके सूरजमलजी, पचालालजी तथा तेजमलजी नामक तीन पुत्र हए. इनमें सेठ सरजमलजी संक्त १९३३ में गुजरे। सेठ पालालजी ने ५ साल पहिले हिंगणघाट में तथा २ साल पहिले बबई में दुकानें की । सेठ सूरजमलजी के पुत्र कल्याणमलजी, पनालालजी के पुत्र उम्मेदमलजी तथा तेजमलजी के पुत्र कल्यागमलजी, सरदारमलजी और इन्द्रमल हैं। इस कुटुम्ब के लिये कुचामण में कई लागे बन्द हैं तथा यह परिवार यहाँ “सेठ" के नाम से म्यवहत होता है। भापके वहाँ केनदेन तथा बोहरगत का व्यवसाय होता है।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy