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________________ প্রবাল सेठ हमीरमलजी-मुहणोत रामदासजी अजमेर में और लछमणदासजी कुचामण में निवास करने कगे। रामदासजी के पुत्र हमीरमलजी हुए। इनकी सिंधिया दरबार में बैठक थी। संवत् १९११ में जोधपुर दरवार ने इन्हें पुनः सेठ की पदवी और पालकी, सिरोपाव, दरबार में बैठने का सम्मान तथा म्यापार के लिए आधे महसूल की माफ़ी का आर्डर और उनके घरू व्यवहार के माल पर पूरी चुङ्गी माफ रहने का हुकुम प्रदान किया। जब सेठ हमीरमलजी अपने पंजाब के खजानों की देख-भाल करने गये, तब फायनेंस कमिश्नर पंजाब और कमिभर जालंधर डिविजन ने तहसीलदारों के मामपर सेठ हमीरमलजी की पेशवाई के लिए स्टेशन पर हाजिर रहने के हुक्म जारी किये थे। सेठ हमीरमलजी के धीरजमलजी, चंदनमलजी और चांद. मलजी नामक तीन पुत्र हुए, इन तीनों भ्राताओं का कारवार संवत् १९३४-३५ में अलग-अलग होगवा । धीरजमलजी के कनकमलजी तथा धनरूपमझजी नामक दो पुत्र हुए, इनमें से धनरूपमलजी, चंदनमलजी के नाम पर दत्तक चले गये। इस समय कमकमलजी के पुत्र सागर में तथा धनरूपमलजी लश्कर में व्यापार करते हैं। राय साहिब सेठ चांदमलजी-सेठ चांदमलजी का जन्म संवत् १९०५ में हुआ । संवत् १९२१ में जोधपुर ने पुनः इनको “सेठ" की पदवी दी। इनके समय में कोहाट, कुर्रम, मलाकान, पेशावर, जालंधर; हुशियारपुर, भागसू, सागर और मुरार, सांभर, पचपदरा, डीडवाना के वृटिश खजाने इनकी फर्म के अधिकार में थे और बम्बई, जबलपुर, नरसिंहपुर, मिरजापुर, धर्मशाला, पेशावर, गवालियर, जोधपुर, सागर, अजमेर, भेलसा, इन्दौर, झांसी, मेमिन और आज़मगढ़ में दुकानें और यू० पी०, सी० पी० में जमीदारी थी । रायसाहब सेठ चांदमलजी लोकप्रिय पुरुष थे । संवत् १९२५ तथा ३४ के राजपूताने के घोर दुष्कालों के समय मापने गरीव प्रजा की बहुत सहायता की थी। आप जबान के बड़े पक्के जीवदया और परोपकार के कामों में उदारतापूर्वक सम्पत्ति खर्च करनेवाले म्यक्ति थे। आप स्थानकवासी जैन कान्फ्रेंस के जन्मदाता और जनरल सेक्रेटरी थे तथा उसके मोरवी के प्रथम अधिवेशन का प्रमुख स्थान आपने सुशोभित किया था। इसी तरह उसके अजमेर वाले चौथे अधिवेशन के समय में भी भापने हजारों रुपये व्यय किये थे। सन् १८६८ में आप म्युनिसिपल कमिश्नर और १८७८ में ऑनरेरी मजिस्ट्रेट दर्जा दोयम बनाये गये । सन् १८७७ के देहली दरबार में आप निमंत्रित किये गये, उस समय लार्ड लिटन ने आपको राय साहिब का खिताब, स्वर्णपदक तथा सार्टिफिकेट दिया था। सन् १८७८-७९ में जब काबुल का युद्ध आरम्भ हुभा सब आपने गवर्नमेंट को 1 करोड़ रुपये खजाने से दिये थे इससे प्रसन्न होकर पंजाब गवर्नर ने सेठजी के एजंट को सिलअत और दुपट्टा इनायत कियाथा। इस प्रकार प्रतिष्ठापूर्ण जीवन बिताकर १९७१ में भापका देहावसान हुमा। भापके देहावसान के समय एक बड़ी रकम घरमादा खाते निकाली गई थी। आपके घनश्याम
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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