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________________ पोसवाल जाति का इतिहास ऊपर हमने भोसवाल जाति की उत्पत्ति के संबन्ध में उन सब मतों का संक्षिप्त में विवेचन कर दिया है जो इस समय विशेष रूप से सब स्थानों पर प्रचलित है। मगर ये सभी मत अभी तक इतने संशयात्मक है कि बिना अनुमान की अटकल लगाये केवल तर्क या प्रमाण के सहारे इस जाति की उत्पत्ति के संबन्ध में किसी निश्चित मत पर पहुँचना कठिन है। प्राचीन जैनाचार्यों के मत की पुष्टि में-जोकि ओसवाल जाति की उत्पत्ति को भगवान् महावीर से ७० वर्ष के पश्चात् से मानते हैं अभी तक कोई ऐसा मजबूत और दृढ़ प्रमाण नहीं मिलता है जिसके बल पर निर्विवाद रूप से इस मतकी सत्यता को स्वीकार की जा सके। दूसरा मत जो संवत् २२२ का है, उसके विषय में कई विद्वानों ने कुछ प्रमाण एकत्रित किए हैं जो हम नीचे देते हैं: (1) जैन साहित्य के अन्दर समराहच्च कथा नामक एक बहुत प्रसिद्ध और माननीय ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ की ऐतिहासिक महत्ता को जर्मनी के प्रसिद्ध जैन विद्वान् डा. हरमन जेकोवी ने इसके अनुवाद पर लिखी हुई अपनी भूमिका में मुक्त कंठ से स्वीकार की है। इस ग्रंथ के लेखक सुप्रसिद्ध विद्वान् आचार्य श्री हरिभद्र सूरि ने सातवीं सदी में पोरवाल जाति का संगठन किया। इसी कथा के सार में एक श्लोक आया है जिसमें लिखा हुआ है कि उएस नगर के लोग ब्राह्मणों के कर से मुक्त हैं। उपकेश जाति के गुरू ब्राह्मण नहीं हैं । श्लोक इस प्रकार है: तस्मात् उकेशज्ञाति नाम गुरवो ब्राह्मणः नहीं। उएस नगरं सर्व कर ऋण समृद्धि मत् ॥ सर्वथा सर्व निर्मुक्त मुएसा नगरं परम् । तत्प्रभृति सजातिविति लोक प्रवीणम् ॥ यहाँ यह बात ध्यान में रखने योग्य है कि समराइच कथा के लेखक आचार्य हरिभद्रसूरि का समय पहले संवत् ५३० से संवत् ५८५ के बीच तक माना जाता था, मगर अब जैन साहित्य के प्रसिद्ध विद्वान जिनविजयजी ने कई प्रमाणों से इस समय को संवत् ७५७ से लेकर संवत् ८५७ के बीच माना है। यदि इस मत को स्वीकार कर लिया जाय तो संवत् ७५७ के समय में उएश जाति और उएश नगर बहुत समृद्धि पर थे, यह बात मालम होती है और यह मानना भी अनुचित न होगा कि इस समृद्धि को प्राप्त करने में कम से कम २०० वर्षों का समय अवश्य लगा होगा । इस हिसाब से इस जाति के इतिहास की पौर विक्रम की पाँचवी शताब्यो तक पहुँच जाती है।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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