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________________ आसवाल जाति का इतिहास कुम्भलगढ़ के हाकिम बनाये गये । गणराजजी के भीमराजजी, वृद्धराजजी और बुधराजजी नामक तीन पुत्र हुए। श्री बुद्धराजजी बड़े योग्य और देश भक्त सज्जन हैं। आपने बड़ौदे के कला भवन में कपड़े चुनने का काम सीखा और वहाँ की परीक्षा पास की। इसके बाद आपने मारवाड़ की वकालत परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। अब आप चीफकोर्ट में वकालत करते हैं। आपको राज्य में अपने कुटुम्ब के प्राचीन प्रथा के अनुसार मान सम्मान प्राप्त है। भूहड़मलजी के गम्भीरमलजी और गम्भीरमलजा के सरदारमलजी नामक पुत्र हुए। सरदारमजी को इतिहास का प्रेम है। आपके पास जोधपुर राज्य के इतिहास की अच्छी सामग्री है। 'मुहणोत परिवार, किशनगढ़ हम ऊपर जोधपुर के मुणत परिवार में इस वंश के पूर्व पुरुषों का इतिहास लिख चुके हैं। मोजजी की १८ वीं पुस्त में मेहता अर्जुनजी हुए। इनके पुत्र रोहीदासजी किशनगढ़ चले गये। इनके परिवार के लोग आज भी किशनगढ़ में निवास करते हैं। मेहता रोहीदासजी के रायचन्द्रजी नामक पुत्र हुए । रायचन्द्रजी - जोधपुर के राजा शूरसिंहजी के छोटे भाई का नाम कृष्णसिंहजी था। आपको राज्य से दूदोड़ आदि १३ गाँवों की जागीर का पट्टा मिला था । संवत् १६५४ में आपकी नबाब मुराद(जो अजमेर का तत्कालीन सूबेदार था) के द्वारा बादशाह अकबर के दरबार में पहुँच हुई। बादशाह ने आपके व्यवहारों से प्रसन्न होकर संवत् १६५५ में हिन्डोन आदि सात परगने प्रदान किये। इसके तीन साल बाद आपने अपने नाम से एक नया नगर बसाकर उसका नाम कृष्णगढ़ रखा। जो वर्तमान में एक स्टेट है। रायचन्द्रजी तथा आपके महाराज की बहुत अच्छी - जब महाराजा कृष्णसिंहजी ने जोधपुर से प्रमाण किया था उस समय भाई शंकर मणिजी दोनों साथ थे। कृष्णगढ़ बसाने तक आप दोनों भाइयों ने सेवाएँ कीं । जिनसे प्रसन्न होकर महाराज ने रामचन्द्रजी को अपना मुख्य मंत्री नियुक्त किया । आप दोनों भाईयों के रहने के लिये बड़ी २ दो हवेलियाँ बनवादीं। आज वे बड़ी पोल और छोटी पोल के नाम से प्रसिद्ध हैं। तथा रायचन्द्रजी ने संवत् १७०२ में एक जैन मन्दिर श्री चिन्तामणी पार्श्वनाथजी बनवाकर उसकी प्रतिष्ठा करवाई। यह मंदिर अभी भी किशनगढ़ में मौजूद है। 30% महाराजा कृष्णसिंहजी के बाद उनके उत्तराधिकारी महाराजा मानसिंहनी हुए। आपने भी ६०
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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