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________________ मुहमोत दीवान कर्मसीजी आप सुप्रख्यात् दीवान नैणसीजी के प्रथम पुत्र थे। सम्बत् १६९० के वैसाख सुदी २ को भापका जन्म हुआ। आपका शुभ विवाह कोयरी जगनाथसिंहजी की पुत्री से हुआ, जिनसे आपको प्रतापसिंहजी और संग्रामसिंहजी नामक दो पुत्र हुए। सम्बत् १७१४ की भाद्रपद सुदी १० को तत्कालीन मुगल बादशाह शाहजहाँ दिल्ली में बीमार होगया। इससे वह मार्गशीर्ष बदी ५ को आगरे चला आया। बादशाह की बीमारी का समाचार पाकर युवराज दाराशिकोह को छोड़ कर दूसरे सब शाहजादे बादशाहत लेने के लिए अपने अपने सूओं से रवाना हुए। जब यह बात बादशाह को मालूम हुई तब उसने औरङ्गजेब और मुराद को (जो दक्षिण के सूबे पर थे) रोकने के लिए महाराजा यशवन्तसिंहजी को २२ बादशाही उमरावों के साथ रवाना किए । सम्बत् १७११ की माधवदी १ को आप लोग उज्जैन पहुंचे। जब महाराजा को उज्जैन में यह सूचना मिली कि शाहजादा मुरादबख्श उज्जैन आ रहे हैं तो आप लोग भी मुकाबले के लिए खाचरोद मुकाम पर पहुंचे। वहाँ से मुराद पीछा फिर गया और वह औरङ्गजेब के शामिल होगया। इस पर महाराजा ने खाचरोद से कुच कर उज्जैन से पाँच कोस के अन्तर पर चोरनराणा (वर्तमाम में इसे फतियाबाद कहते हैं ) गाँव में मुकाम किया। औरङ्गजेब भी अपनी फौज सहित वहाँ आ पहुँचा। बादशाह के २२ उमरावों में से १५ औरङ्गजेब के साथ मिल गये। इससे महाराजा यशवन्तसिंह की स्थिति बड़ी कमजोर हो गई। फिर भी महाराजा ने औरङ्गजेब से युद्ध किया। इस युद्ध में करमसीजी भी बड़ी बहादुरी से लड़कर घायल हुए थे। भापके अरिरिक्त इस युद्ध में महाराजा के १४२ सरदार, ७०१ राजपूत और ३०१ घोड़े मारे गये। बहुत से आदमी घायल भी हुए। इस युद्ध में महाराजा की हार हुई । वे कुछ घायल भी हुए। उन्हें लौट कर जोधपुर आना पड़ा। संवत् १७१८ में कर्मसीजी महाराजा के साथ गुजरात में थे। जब महाराजा को पादशाही से हाँसी हिसार के परगने मिले तो अहमदाबाद के मुकाम से उन्होंने इनको संवत् १७१४ के मार्गशीर्ष वदी ८ को वहाँ के शासक नियत कर भेजे। ये परगने ( तेरह लाख की आमदनी के) गुजरात के सूबे की एवज में मिले थे। कर्मसीजी हाँसी-हिसार में संवत् १७२३ तक रहे । संवत् १७२७ में इनके पिता कर्मसीजी के अतिरिक्त इस लड़ाई में और भी कई श्रोसवाल मारे गये तथा घायल हुए जिनमें मुहता कृष्णदास, मुहता नरहरिदास सुराणा ताराचन्द, भण्डारी ताराचंद नारणोत (दीबान) भण्डारी भभयराज रायमलोत के नाम उल्लेखनीय है।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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