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________________ लाख लखाराँ नीपजे, बड़ पपिल री साख । नाटयो मूँतो नैणसी, वाँबो देण तलाक ॥ १ ॥ लेसो पीपल लाख, लाख लखाराँ लावसो । ताँबो देण तलाक, नटिया सुन्दर नयासी ॥ २ ॥ मैणसी और सुन्दरदास के दण्ड के रुपये देना अस्वीकार करने पर वि० सं० १७२६ माघ वदी १ को फिर क़ैद कर दिए गए और उन पर रुपयों के लिये सख़्तियाँ होने लगी । फिर कैद की हालत में ही इन दोनों को महाराज ने औरंगाबाद से मारवाद को भेज दिया। दोनों वीर प्रकृति के पुरुष होने के कारण इन्होंने महाराज के छोटे आदमियों की सक्तियाँ सहन करने की अपेक्षा वीरता से मारना उचित समझा। वि० सं० १७२७ की भाद्रपद बदी १३ को इन्होंने अपने पेट में कटार मारकर मार्ग में ही शरीरांत कर दिया । इस प्रकार महा पुरुष नैणसी की जीवन लीला का अंत हुआ और महाराज की बहुत कुछ बदनामी हुई । नैणसीजी की साहित्य सेवा-जैसा कि हम ऊपर लिख चुके हैं मुहणोत नैणसी बड़े विद्वान्, साहित्य सेवी और इतिहास- प्रेमी थे । वीर कथाओं से आपका बड़ा अनुराग था । राजस्थान के इति हास पर आपने एक बड़ा ही प्रमाणिक और महत्पूर्ण ग्रन्थ लिखा जो 'मुहणोत नैणसी की स्मात' के नाम से प्रसिद्ध है । इस प्रन्थ-रक्ष में राजपूताना, गुजरात, काठियावाड़, कच्छ, बघेलखण्ड बुड और मध्य भारत आदि के इतिहास से सम्बन्ध रखनेवाली बड़ी ही बहुमूल्य सामग्री भरी हुई है । राजपूताने के इतिहास के किये तो यह ग्रन्थ अमूल्य है । इस ग्रंथ रन की सामग्री इकट्ठा करने में नैणसीजी ने बड़ा परिश्रम किया । जहाँ २ से आपको सामग्री मिली वहाँ से आपने संग्रह की। इससे यह ग्रंथ इतिहास वेत्ताओं के लिये बड़ा ही उपयोगी और मूल्यवान हो गया । वि० सं० १३०० के बाद से नैणसी के समय तक के राजपूतों के इतिहास के लिये तो मुसलमानों को लिखी हुई फ़ारसी तवारीखों से भी नैणसी की ख्यात कहीं २ विशेष महत्व की है। राजपूताना के इतिहास में कई जगह जहाँ प्राचीन शोध से प्राप्त सामग्री इतिहास की पूर्ति नहीं कर सकती, वहाँ नैणसी की ख्यात ही कुछ-कुछ सहायता देती है। यह इतिहास का एक अपूर्व संग्रह है। स्वर्गीय मुंशी देवीप्रसादजी तो नैणसी को "राजपूताने का अब्बुलफ़जल" कहा करते थे, जो अयुक्त नहीं हैं। ख्यात की भाषा लगभग २७५ वर्ष पूर्व की मारवाड़ी है, जिसका इस समय ठीक २ समझना भी सुलभ नहीं है । नैणसी में जगह जगह राजाओं के इतिहास के साथ २ कितने ही लोगों के वर्णन के गीत, दोहे, छप्पय आदि • राय बहादुर भोकाजी के लेख से । ५१ मुहणोत झ
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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