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________________ बोथरा सेठ फतेचन्द, चौथमल, करमचन्द बोथरा, राजलदेसर ( बीकानेर ) करीब १५० वर्ष पूर्व इस परिवार के पुरुष राजलदेसर में १० मील की दूरी वाले ग्राम छोटड़िया से आये । राजलदेसर में सर्व प्रथम आने वाले व्यक्ति गिरधारीमलजी के पुत्र सेठ फतेचन्दजी थे । संवत् १८६७ में आप व्यापार के निमित्त बंगाल प्रांत के रंगपुर नामक स्थान पर गये । वहाँ जाकर आपने फतेचन्द पनेचन्द के नाम से एक फर्म स्थापित की। जिस समय आपने फर्म स्थापित की उस समय आज कल जैसा सुगम मार्ग नहीं था, अतएव बड़े कठिन परिश्रम से आप करीब ६ माह में राजलदेसर से बंगाल में पहुँचे थे । वहाँ जाकर आपने अपनी एक फर्म स्थापित की । आप व्यापार-चतुर पुरुष थे । आपने व्यापार में अच्छी सफलता प्राप्त की । आप के चार पुत्र हुए, जिनके नाम क्रमशः बालचन्दजी, पनेचन्दजी, चौथमलजी, और हीरालालजी हैं । आप चारों ही भाई पहले तो शामलात में व्यापार करते रहे, मगर फिर अलग अलग हो गये। बालचन्दजी का व्यापार इसी फर्म की सिराजगंज वाली ब्रांच पर रहा। शेष भाइयों का व्यापार रंगपुर ही में रहा । सेठ बालचन्दजी के हजारीमलजी, पृथ्वीराजजी और भैरोंदानजी नामक तीन पुत्र हुए । अपि लोगों का स्वर्गवास हो गया। हजारीमलजी के दो पुत्र हुए जिनके नाम अमोलकचन्दजी और हरकचन्दजी थे । पृथ्वीराजजी के पुत्र मालचन्दजी हुए जो सेठ भैरोंदानजी के यहाँ दत्तक रहे । अमोलकचन्दजी के चार पुत्र दीपचन्दजी, चम्पालालजी, रायचन्दजी और शोभाचन्दजी इस समय विद्यमान हैं। हरकचन्दजी के इस समय हुलासमलजी और आसकरनजी नामक दो पुत्र हैं। इसी प्रकार मालचन्दजी के भी सात पुत्र हैं, जिनके नाम क्रमशः हुलासमलजी, धरमचन्दजी, छगनमलजी, जवरीमलजी, इन्द्रचन्दजी, नेमीचन्दजी और भूरामलजी हैं। सेठ पनेचन्दजी के पुत्र कालूरामजी का स्वर्गवास हो गया। आपके चन्दूलालजी नामक पुत्र राजलदेसर ही में रहते हैं । आपके भीखमचन्दजी और मोहनलालजी नामक दो पुत्र हैं । सेठ चौथमलजी इस परिवार में प्रतिष्ठित व्यक्ति हुए । आपने व्यापार में अच्छी सफलता प्राप्त की । आपके प्रतापमलजी नामक पुत्र हुए। आप मिलनसार हैं। आपके धार्मिक विचार तेरापंथी जैन श्वेताम्बर संम्प्रदाय के हैं । प्रायः आपने सभी हरी छोड़ रखी है । आजकल आप व्यापार के निमित्त कलकत्ता बहुत कम आते जाते हैं । आपके सम्पतमलजी नामक एक पुत्र हैं । आप ही अपने व्यापार का संचालन करते हैं । आपके भँवरीलालजी और कन्हैयालालजी नामक दो पुत्र हैं। सेठ प्रतापमलजी की दो पुत्रियों ने जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सम्प्रदाय में दीक्षा ले रखी है। आपका व्यापार इस समय कलकत्ता में सम्पतमल भँवरीलाल के नाम से १५ नारयल लोहिया लेन में जूट और हुंडी चिट्ठी का होता है । 1 ३५
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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