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________________ बोयरा द्वारा बड़ी बुद्धिमानी भौर होशियारी से निपटा दिया। एक बार बंगाल सरकार ने भी भापके कार्यों की प्रशंसा में प्रमाण पत्र दिया था। आपके स्मारक स्वरूप इस कुटुम्ब ने पावापुरी, चम्पापुरी एवम् चांवा नामक तीर्थ स्थानों पर कोठड़ियाँ बनवाई है। सेठ भमानमलजी के दुलिचन्दजी, छोगमलजी, भैरोंदानजी, मुकुनमलजी, रिखबचन्दजी और हीराचन्दजी नामक छ, पुत्र हैं। सेठ मेघराजजी के सुगनमजी, रूपचन्दजी और अमरचन्दजी नामक तीन पुत्र हैं। भाप सब लोग सज्जन और व्यापार कार्यकर्ता है। भाप लोगों की भोर से गोगोलाव में सार्वजनिक कार्यों की भोर अच्छी सहायता प्रदान की जाती रहती है। इस कुटुम्ब के व्यापार का हेड भाफिस चीलमारी में है । इसके अतिरिक्त कलकत्ता, चीलमारी बाँच, माणक्याचर, सुनामगंज, बक्षीगंज, दांताभांगा, काली बाजार, उलीपुर, रामइमरतगंज इत्यादि स्थानों पर मित मित्र नामों से फर्मे खुली हुई हैं। इन सब पर बैंकिग जूट, कपड़ा, म्याज, गिरवी और जमींदारी का काम होता है। कलकत्ता का सार का पता Gogolawbasi है। सेठ रावतमल मुलतानमल बोथरा नागोर बोथरा सवाई रामजी के पूर्वज बदलू ( मारवाद) में रहते थे, वहाँ से यह कुटुम्ब पलाय (नागौर के समीप) भाया और वहाँ से बोधरा सवाईरामजी के पुत्र रावतमलजी तथा मुलतानमलजी संवत् १९६१ में नागोर आये। बोथरा सवाई रामजी के रावतमलजी, मुलतानमलजी, जवाहरमलजी, परतापमलजी तथा मोती. पन्दजी नामक ५ पुत्र हुए। इन बन्धुओं में से ५०६० साल पहिले सेठ जवाहरमलजी पीलमारी (बंगाल ) और रावतमलजी रंगपुर (बङ्गाल ) गये, तथा वहाँ पाट का व्यापार शुरू किया । धीरे २ संवत् १९९६ में भापकी कलकत्ता तथा बंगाल में कई स्थानों पर दुकानें खुली। इन बन्धुओं के स्वर्गवासी होने पर बोथरा सुगनमलजी ने इस कुटुम्ब के व्यापार को अच्छी तरह संभाला। सेठ रावतमळजी का स्वर्ग १९६४ में, मुलतानमरूजी का १९८६ की कार्तिक सुदी । को, जवाहरमरूजी का १९०१ में, मोतीचन्दजी का १९५९ में तथा परतापमलजी का १९५२ में हुभा। सेठ मुलतानमकी नागौर में धर्मभ्यान में तमा परोपकार में जीवन बिताते रहे, आप यहाँ के इज्जतदार व प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। बोथरा रावतमलजी ने रंगपुर में व्यापार के साथ २ सरकारी भाफिसरों में इज्जत व नाम पाया, आप भोसवाल भाइयों पर विशेष प्रेम रखते थे। वर्तमान में इस परिवार में रावतमलजी के पुत्र गोपालमजी तथा सुगनमलजी, मुलतानमलजी के पुत्र मुकुन्दमलजी, उदयचन्दजी, चन्दनमलजी और लक्ष्मीचन्दजी, बोथरा जवाहरमलजी के पुत्र अमोलख
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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