SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रातबाट माति की स्पात वि.सं. से ४०० वर्ष पहले वीर निर्वाण संवत .. में उसका उपकेश नगरी बसाना लिया है और दूसरी ख्यातों में इस समय से १०० वर्ष पश्चात् पाने संवत २२२ में उपलदेव के सम्मुख ही भोसियां के लोगों का जैनी होना वर्णन किया है। एक ख्यात में उपलदेव का होना संवत १०३५ पीछे लिखा है अब कि पंवार राठोड़ों से भावू ले चुके थे। मुहता नेणसी ने अपनी ख्यात में उपलदेव का कोई साल संवत् तो नहीं बतलाया मगर उपलदेव को धारा नगरी के राजा भोज की • वीं पुरत में माना है। कहना न होगा कि राजा भोज सिंधुराज का बेटा और वाक्पति मुंजराज का भतीजा था। मगर यह दलील गलत मालूम होती है। और धूमरिख (धूमराज ) के सिवाय सब नाम भी गलत हैं। क्योंकि राजा भोज के तथा उसके वंशजों के दानपत्रों में न तो ये पिड़ियां हैं और न उपलदेव का उमसे कोई सम्बन्ध ही। इसके अतिरिक्त ऐतिहासिक खोजों से भी मारवाड़ में राजा भोज की संतानों का राज करना साबित नहीं होता। हाँ, इतना अवश्य है कि मारवादक पंवार राजा कृष्णराज तथा सिंधुराज मालवे के राजाभोज और उसके पुत्र उदयादित्य के समकालीन थे। पाठकों की जानकारी के लिये हम मालवा और भावूके पवार राजामों की वंशावली नीचे देते हैं। . मालवा उत्पलराज उपेन्द्र बैरिसिंह भरण्यराज सीयक वाक्पतिराज भरण्यराज बैरिसिंह महीपाल सीयक हर्ष धन्धुक वाक्पति मुंजराज सं १०३१ पूर्णपाल सं० १०९९-11.. सिन्धुराज (नं. १ का भाई)३६-५० ध्रुवमह भोजराज ( राजा भोज) ..... रामदेव • राजा भोज (१), राजा विंद (२), राणा उदयचंद (३), राजा जगदेव (४), राजा गवरिख (५), राना भूमरिस (६), राजा उपलदेव (७) + राम मृगांक से राजा भोज का राव सं० १.६ में भी माराम होता है।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy