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________________ बच्छावत सहित चले गये। मेहता शेरसिंहजी के भाई मोतीरामजी जो पहले जहाजपुर के हाकिम और मेहता शेरसिंहजी के प्रधानख में शामिल थे, शेरसिंहजी के साथ ही रसोड़े में कैद किये गये थे, कुछ दिनों बाद कर्ण विलास महल के कई मंजिल उपर से गिरजाने के कारण उनका प्राणांत हो गया। यह वह जमाना था जब मेवाड़ में धींगाधींगी मच रही थी और रियासत के कुल सरदार महाराणा के खिलाफ हो रहे थे। जब महाराणा सरूपसिंहजी का राज्य की आमद और खर्च उचित प्रबन्ध करने का विचार हुआ और मंत्री रामसिंहजी पर अविश्वास हुआ तब उन्होंने मेहता शेरसिंहजी को मारवाड़ से बुलवा कर फिर से अपना प्रधान बनाया। इसके कुछ समय पश्चात् ही मेहता रामसिंहजी का एक इकरार नामा आया। इस इकरारनामे के आने के बाद ही अंग्रेजी सरकार की खिराज के रुपये बाकी रह जाने के कारण मेहता शेरसिंहजी की भी शिकायतें हुई। लेकिन महाराणा के दिल पर इनका कुछ भी असर न पड़ा। इसका कारण यह था कि वे पहले भी अजमेर के जलसे, और तीर्थों की सफर में होनेवाले लाखों रुपये के खर्च का हिसाब जो मेहता शेरसिंहजी के पास था देख चुके थे। वह मेहताजी की इमानदारी का काफी सबूत था। दूसरी बात यह थी कि शेरसिंहजी बहुत मुलायम दिल एवम् मित्रता के बड़े पर थे। यही कारण था कि इनके खिलाफ बहुत लोग न थे। तीसरी बात यह थी कि ये खैरख्वाह अगरचन्दजी के वंशज थे। महाराणा ने अपने सरदारों की टून्द चाकरी का मामला तय कराने के लिए मेवाड पोलिटिकल एजण्ट कर्नल राबिन्सन से सं० १९०१ में एक नया कौल-नामा तैयार करवाया, जिसपर शेरसिंहजी सहित कई उमरावों के हस्ताक्षर थे ।। शेरसिंहजी ने प्रधान बनकर महाराणा की इच्छानुसार व्यवस्था की और कर्जदारों का फैसला भी योग्य रीति से करवाया। लावे (सरदारगढ़) का दुर्ग महाराणा भीमसिंहजी के समय में शकावतों ने डोंडियों से छीन कर अपने अधिकार में करालिया था। महाराणा सरूपसिंहजी के समय वहाँ के शकावत रावत चतरसिंह के काका सालमसिंह ने राठोड़ मानसिंह को मार डाला सब उक्त महाराणा ने उनका - कुंडेई गाँव जस कर लिया और चतरसिंह को आज्ञा दी कि वह उसे गिरफ्तार कर ले । चतरसिंह ने महाराणा के हुक्म की तामील न कर सालमसिंह को पनाह दी। इस पर महाराणा ने वि० सं० १९०४ (ई. सन् १४४७) में शेरसिंहजी के दूसरे पुत्र जालिमसिंहजी * को ससैन्य लावे पर अधिकार करने के लिये भेजा । उन्होंने जालिमसिंहजी मेहता अगरचन्दजी के दूसरे पुत्र उदयरामजी के गोद रहे, परन्तु उनके भी कोई पुत्र न था इसलिये उन्होंने मेहता पन्नालालजी के तीसरे भाई तख्तसिंहजी को गोद लिया। तख्तसिंहजी गिरवा व कपासन के प्रान्तों पर हाकिम रहे तथा महकमा देवस्थान का भी प्रबन्य कई वर्षों तक इनके सुपुंद रहा। महाराणा सज्जनसिंहजी ने इन्हें इज. लासे खास और महद्राज सभा का सदस्य बनाया। ये सरल प्रकृति के कार्य कुशल व्यक्ति थे।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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