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________________ श्रीसवाल जाति का इतिहास नियुक्त किया । करीब छः मास तक उनपर ऐसी कृपा बतलाई कि मानो वे पुरानी सभी बातों को भूलाये हो । एक समय स्वयं राजा साहब इनकी हवेली पर भी पधारे जहाँ पर इन दोनों ने एक लाख रुपये का चौतरा बनवा कर उनको बिठाया। इस प्रकार छः मास के बाद एक समय राजाजी ने बहुत से वीर राजपूतों को इन दोनों के मारने के लिये भेजा । ये दोनों भी बड़े वीर थे । आपने अपने परिवार के सभी व्यक्तियों को मार कर अपने ५०० वीरों सहित लड़कर शत्रुओं का सामना किया और अंत में वीर गति को प्राप्त हुए । इसी अवसर पर रघुनाथ नामक एक सेवक इनके कुटुम्ब की एक गर्भवती स्त्री को लेकर करणी माता के मंदिर में शरण चला गया । उस समय के करणीमाता के मन्दिर के नियमानुसार ये लोग बच गये तथा आगे चलकर इन्हीं के पुत्र भाण हुए जिनसे आगे का वंश चला। उस सेवक के वंशज भाज भी वच्छावतों के सेवक हैं उसके वंश में हाल ही में गंगाराम और गिरधारी हुए हैं जिन्हें राज्य से सम्मान प्र था। इनका पुत्र पृथ्वीराज अब भी मौजूद है । भाण के पुत्र 'जीवराजजी हुए । उनके पुत्र लालचंदजी और उनके प्रपोन पृथ्वीराजजी हुए । आप लोग पहले बीकानेर से अजमेर और फिर घासा ग्राम (मेवाड़) में आरहे । घासा ग्राम में भाकर पहले पहल ये देवारी दरवाजे के मोसल मुकर्रर हुए और फिर जनानी ड्योढ़ी पर मोसल हुए ! पश्चात दरबार के खास रसोड़े के आफिसर बने । इस प्रकार धीरे २ इनकी राणा जी तक पहुँच हो गई । इनके २ पुत्र हुए- अगरचन्दजी और हंसराजजी । मेहता अगरचंदजा मेहता अगरचंदजी और उनके भाई हंसराजजी दोनों ही राज्य में ऊँचे पदों पर रहे। महाराणा अरिसिंहजी ने अगरचन्दजी को मांडलगढ़ की किलेदारी पर तथा उक्त जिले की हुकुमत पर नियुक्त किया । तभी से मांडलगढ़ के किले की किलेदारी इस वंश के हाथ में चली आरही है। ये पहले महाराणा के सलाहकार और फिर दीवान बनाये गये । महाराणा अरिसिंहजी द्वितीय की माधवराव सिंधिया के साथ होनेवाली उज्जैन की लड़ाई में मेहता अगरचन्दजी भी लड़े थे। जब माधवराव सिंधिया ने दूसरी बार घेरा डाला उस समय के युद्ध में भी महाराणा ने इनको अपने साथ रक्खा। महापुरुषों के साथ होनेवाली टोपल मगरी और गंगार की लड़ाइयों में भी ये महाराजा के साथ रहकर लड़े थे । महाराणा हमीरसिंहजी ( दूसरे ) के समय में मेवाड़ की विकट बड़वे अमरचन्दजी के बड़े सहायक रहें । जब शक्तावतों और नोट- भोकाजी भाण को भामाशाह की पुत्री का लड़का होना लिखते है । भोजराज का पुत्र होना लिखा है। स्थिति सम्हालने में आप पूँढावतों के झगड़ों के पश्चात् आंबाजी मगर मेहताओं की तवारीख में भाग को .१७
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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