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________________ ओसवाल जाति का इतिहास लिख दिया कि बंगाल का दीवान बंगाल की भूमि का एक कण-मात्र भी विदेशी व्यापारियों को सौंपने में असहमत है। उसने बंगाल के जमीदारों को भी सूचना कर दी कि बादशाह का फर्मान आने पर भी अंग्रेज ब्यापारियों को कोई जमीन का एक इंच टुकड़ा भी न दे। यहां यह बात स्मरण रखना चाहिये कि इस फर्मान से यद्यपि जगतसेठ का अन्तःकरण से विरोध था मगर उस क्षण २ में डगमगाती हुई राजनैतिक परिस्थिति में वे अंग्रेजों से खुली शत्रुता मोल लेने के पक्षपाती न थे। इसलिये जब अंग्रेज ब्यापारी उनके पास गये और उनसे शाहंशाह के फर्मान को मान्य रखने का आग्रह किया तो उन्होंने मिठास के साथ उनके आँसू पोंछ दिये और इस विषय में बनती कोशिश प्रयत्न करने का आश्वासन दिया। यह बात जब बादशाह फर्रुखसियर के पास पहुंची तब वह क्रोध से उन्मत्त हो गया और उसने तत्काल दूसरा फर्मान छोड़ा जिसमें मुर्शिदकुलीखों को दीवान पद से अलग करके उसके स्थान पर सेठ माणिकचंदनी को दीवान बनाने की स्पष्ट घोषणा थी और उसके साथ ही सेठ माणिकचंद और उनके वंशजों को जगतसेठ की पदवी से विभूषित करने की इच्छा भी प्रदर्शित की गई थी। माणिकचंद सेठ को जब यह फर्मान प्राप्त हुआ तो उनके आश्चर्य का पार न रहा। जिस समय में हिन्दुओं के जीवन, धन, माल और इजत नष्ट करने में ही मुसलमान अमलदार इसलाम के आदेश का सच्चा पालन समझते थे उस विकट समय में दिल्ली का शाहंशाह एक जैन धर्मावलम्बी को बंगाल का दीवान अथवा सूबा बना रहे थे यह एक अद्भुत घटना थी। जब यह फर्मान मुर्शिदकुलीखां के पास पहुँचा तो उसे इस सारे षड्यन्त्र में माणिकचंद सेठ का हाथ कार्य करता हुआ दिखाई दिया। वह सोचने लगा कि जो माणिकचंद मुर्शिदाबाद को बसाने में उसका सबसे मुख्य प्रेरक था, बंगाल की जमाबंदी को व्यवस्थित करने में तथा प्रजा की शांति के लिये मुर्शिदकुलीखां के साथ बैठकर सब व्यवस्था में अग्रगण्य रहता था वही माणिकचंद आज पाप के प्रलोभन में पड़ गया। मगर जब सेठ माणिकचंद मुर्शिदकुलीखां से मिले और उन्होंने उनको सलाम किया तब मुर्शिदकुलीखां ने ताना मारते हुए कहा कि आज तो आप मुझे सलाम कर रहे हो पर कल ही मेरे जैसे सैकड़ों अधिकारी आपके चरणों में सिर नवायँगे । कल ही आप बंगाल के शासक बनोगे ऐसा बादशाह फर्रुखसियर का फर्मान है। माणकचंद ने अत्यन्त शांति के साथ कहा, "कल न था, आज नहीं हूँ और आने वाले कल में मैं फर्रुखसियर के फर्मान से बंगाल का शासक बनूंगा ऐसा कौन कहता है। मुर्शिदकुलीखां और माणकचंद के बीच में भेद कहाँ है । जब-जब मैंने मुर्शिदकुलीखां को सलाम किया है तब-तब मुझे यही मालूम हुभा है कि मैं अपने भाप को सलाम कर रहा हूँ फिर मेरे लिए बंगाल की सूबेगिरी में आकर्षण ही क्या है। इस सारी मुगल सल्तनत में ऐसी चीज ही क्या है जो
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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