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________________ भोसवाल जाति का इतिहास जी उक्त पाट पर बिराजे। श्री रतनचन्दजी के शिष्य श्री भूपचन्दजी वर्तमान में इस पाट पर विराजमान हैं।* इसी तरह गुजराती लोकागच्छ के भाचार्य जीवाजी के दूसरे शिष्य श्री वरसिंहजी के पश्चात् आपके पाट पर श्री छोटेसिंहजी, श्री यशवंतसिंहज़ी, श्री रूपसिंहजी, श्री दामोदरजी, श्री केशवजी, श्री तेजसिंहजी, श्री कहानजी श्री तुलसीदासजी, श्री जगरूपजी, श्री जगजीवनजी, श्री मेघराजजी, श्री शोभाचन्दजी, श्री हर्षचन्दजी, श्री जयचन्दजी, तथा श्री कल्याणचन्दजी नामक आचार्य विराजे। श्री कल्याणचन्दजी के शिष्य श्री खूबचन्दजी वर्तमान में इस पाट पर विराजमान हैं। गुजरात लोकागच्छ में से श्री कुंवरजी पक्ष आचार्य श्री नृपचन्दजी की गही जामनगर में, वरसिंहजी के शिष्यों में प्रसिद्ध भाचाय्य श्री केशवजी पक्ष के शिष्य आचार्य श्री खूबचन्दजी की गद्दी बड़ौदा में तथा धनराजजी पक्ष के श्री विजयराजजी की गद्दी जैतारण (मारवाड़) में विद्यमान हैं। ___ धर्म सुधारक श्री धर्मसिंहजी-आप नयानगर निवासी दस्सा श्रीमाली वैश्य श्री जिनदासजी के पुत्र थे। आपकी माता का नाम शिवा था। भाप बढ़े तीक्ष्ण बुद्धिवाले तथा धार्मिक सज्जन थे। छोटी उमर से ही आप जैनाचार्यों के व्याख्यान बड़े ध्यान से सुनते थे। आपने १५ वर्ष की आयु में आचार्य श्री रत्नसिंहजी के शिष्य श्री देवजी से नयानगर में ही यति वर्ग की दीक्षा प्रहण की। तदनन्तर आपने जैन शास्त्रों तथा सूत्रों का अध्ययन कर उनका अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया और अपने श्रावकों को जैन तत्वों का उपदेश देने लगे। आप बड़े त्यागी, साहसी, निडर तथा साधु के संयम आदि नियमों को पूर्णरीति से पालते थे। आपने उस समय के साधुओं की भाचार शिथिलता से उन्हें सावधान किया तथा पुनः लोकाशाहजी के सिद्धान्तों का प्रचार कर जैन जगत में नवीन स्फूर्ति पैदा करदी। आपके व्याख्यानों का लोगों पर अच्छा प्रभाव पड़ा। आपके अनुयायी दरयापुरी के नाम से प्रसिद्ध हैं । आपने कई प्रन्थ लिखे थे। भाप संवत् १७२८ में स्वर्गवासी हुए। धर्म सुधारक श्री ऋषि लवजी-आप सूरत निवासी एक धनाड्य श्री माली वैश्य श्री वीरजी बोहरा के पुत्र थे। आपने संवत् १९९२ में खम्भात में जैन धर्म के साधु की दीक्षा ग्रहण की। आप जैन शास्त्रों के व सूत्रों के ज्ञाता तथा साधु के आचार विचार के नियमों को अक्षरशः पालन करने वाले आचार्य थे। आपका त्याग व आपकी क्षमता बहुत बड़ी चढ़ी थी। आपने जैन धर्म के सिद्धान्तों का प्रचार करने में सैकड़ों आपत्तियों का बड़े धीरज के साथ सामना किया था । आपके पश्चात् क्रमशः भाचार्य श्री सोमजी तथा कहानजी का नामोल्लेख हम उपर कर चुके हैं। वर्तमान में आपके सम्प्रदाय के शिष्य श्री अमोलख ऋषिजी महाराज विद्यमान हैं। आपका परिचय आगे दिया जायगा। ___ धर्म सुधारक श्री धर्मदासजी-आप अहमदाबाद जिले के सरखेच नामक गांव के निवासी जीवण कालिदासजी भावसार के पुत्र थे। आपने संवत् १७६ में अहमदाबाद के बाहर बादशाह की बाड़ी में दीक्षा ली थी। प्रारम्भ से ही आपकी एकलपात्री साधुपर श्रद्धा थी। आप धर्म सुधारक श्री धर्मसिंह * उक्त आचार्यों के विशेष परिचय के लिये वाड़ीलाल मोतीलाल शाह लिखित "ऐतिहासिक नोंध" नामक पुस्तक को पदिये। २१.
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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