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________________ मूर्ति पूजक श्राचार्म हाईस्कूल अम्बाला, भी पार्श्वनाथ जैन विद्यालय वरकाणा और उम्मेदपुर, श्री भारमानंद विद्यालय सादड़ी, श्री पालनपुर जैन बोडिंग, आरमवल्लभ केलवणी फण्ड पालनपुर, महावीर जैन विद्यालय बम्बई भादि २ मुख्य हैं। इतना ही नहीं आपने अनेकों संघ निकलवाये, प्रतिष्ठाएँ, अंजनशलाकार्य कराई। आप बड़े शान्त, तेजस्वी एवं प्रतिभा सम्पन्न आचार्य हैं। इस समय भाप जैन कॉलेज और युनिवर्सिटी खोलने का सतत उद्योग कर रहे हैं। आपके उपदेश से पाटन में ज्ञान मन्दिर तयार हो रहा है। आपके शिष्य पन्यास ललितविजयजी शान्त एवं विद्वान जैन मुनि हैं। श्री आचार्य विजयदान सूरिश्वरजी-आपका जन्म विक्रमी संवत् १९१४ की कार्तिक सुदी १४ के दिन झीजुवाड़ा नामक स्थान में रस्सा श्रीमाली जातीय जुठाभाई नामक गृहस्थ के गृह में हुआ, और भापका नाम दीपचन्द भाई रक्खा गया। संवत् १९४५ की मगसर सुदी ५ के दिन गोधा मुकाम पर भात्मारामजी महाराज के शिष्य वीरविजयजी महाराज से आपने दीक्षा ग्रहण की, एवं आपका नाम दानविजयजी रक्खा गया। आपके जैनागम तथा जैन सिद्धान्त की अपूर्व जानकारी की महिमा सुनकर बड़ोदा नरेश ने सम्मान पूर्वक भापको अपने नगर में भामंत्रित किया। संवत् १९६२ की मगसर सुदी १ तथा पौर्णिमा के दिन भापको क्रमशः गणीपद तथा पन्यास पद प्राप्त हुभा, और संवत् १९८१ की मगसर सुदी ५के दिन श्रीमान् विजय कमलसूरिजी ने भापको छाणी गाँव में आचार्य पद प्रदान किया, और तब से भाप “विजयदान सूरिश्वर महाराज" के नाम से विख्यात हैं। नेत्रों के तेज की न्यूनता होने पर भी भाप अनेकों अन्यों के पठन पठनादि कार्यों में हमेशा संलग्न रहते हैं। आपके शिष्य सिद्धान्त महोदधि महा महोपाध्याय प्रेमविजयजी एवं व्याख्यान वाचस्पति पन्यास रामविजयजी महाराज भी उस विद्वान हैं। रामविजयजी महाराज प्रखर वक्ता हैं। भापकी विषय प्रतिपादन शक्ति उच्चकोटि की है। . श्री आचार्य विजयधर्मसूरिजी-आप अन्तराष्ट्रीय कीर्ति के आचार्य थे। आपका जन्म संवत् १९२४ में बीसा श्रीमाली जाति के श्रीमंत सेठ रामचन्द भाई के यहाँ हुआ था। उस समय आपका नाम मूलचन्द भाई रक्खा गया था। बाल्यकाल में भाप पढ़ने लिखने से बड़े घबराते थे। अतः आपके पिताजी ने भापको अपने साथ दुकान पर बैठाना शुरू किया। यहाँ आप सहा और जुगार में लीन हो गये। जब इन विषयों से आपका मन फिरा तो आपने सम्बत् १९१३ की वैशाख वदी५को मुनि वृद्धिचन्दजी महाराज से दीक्षा ग्रहण की, और आपका नाम धर्मविजयजी रक्खा गया। धीरे २ आपने अपने गुरू से भनेकों शास्त्रों का अध्ययन किया । मापने संस्कृत का उच्च ज्ञान देने के हेतु बनारस में “पशो विजय जैन पाठशाला" और "हेमचन्द्राचार्य जैन पुस्तकालय" को स्थापना की । आपने बिहार, बनारस, इलाहाबाद, कलकत्ता, तथा बंगाल, गुजरात, गोडवाड़ आदि अनेकों प्रान्तों में चातुर्मास कर अपने निष्पक्षपात तथा प्रखर व्याख्यानों द्वारा जैन धर्म की बड़ी प्रभावना की। आपके कलकत्ता के चातुर्मास में जैन व अजैन श्रीमत, भनेकों रईस एवं विद्वानों ने भापके उपदेशों से जैन धर्म अंगीकार किया था। इलाहाबाद के कुंभोत्सव के समय जगनाथपुरी के श्रीमत् शंकराचार्य के सभापतित्व में आपके उदार भावों से परिपरित प्रखर भाषण ने जनता में एक अपूर्व हलचल पैदा की थी। संवत् १९६३ में मापने गुरुधारी दीक्षा ग्रहण की। संवत् १९९४ की सावण वदी के दिन बनारस में काशी नरेश के सभापतित्व में अनेकों बंगाली तथा गुजराती १२.
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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