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________________ औसवाल जाति और प्राचार्य फतहपुरसीकरी में जगनमल कछुआ के महल में ठहराये गये । जगनमल कछुआ तत्कालीन जयपुर नरेश भारमल के छोटे भाई थे। ____ इस अलौकिक महापुरुष के तेज से सम्राट अकबर बहुत ही प्रभावान्वित हुए। आचार्य्यवर ने अपने आस्मिक प्रकाश से सम्राट अकबर के हृदय को प्रकाशित कर दिया। शत्रुजय के आदिनाथ मंदिर पर लगी हुई संवत् १६५० की प्रशस्ति में लिखा है कि आचार्यवर के संसर्ग से सम्राट का अंतःकरण निर्मल हो गया और उन्होंने लोक प्रीति संपादित करने के लिये बहुत से प्रजा के कर माफ कर दिये और बहुत से पक्षियों तथा कैदियों को बन्दीखाने से मुक्त मिया। इन्होंने सरस्वती के गृह के समान एक महान् पुस्तकालय का उद्घाटन कया । इस प्रकार अकबर ने और भी कई परोपकारी कार्य किये। ___ सम्राट अकबर के. दरबार में बड़े २ उस्कृष्ट विद्वान् रहते थे। शेख अबुलफजल सरीखे अपूर्व विद्वान् उनके दरबार की शोभा को बढ़ाते थे। कहना न होगा कि अबुलफजल और सूरिजी के बीच में बड़ी ही मधुर. धार्मिक, चर्चा हुई और अबुलफजल आपके अगाध ज्ञान से बड़े प्रभावित हुए। इसके बाद अकबर ने अपने शाही दरबार में सूरिजी को निमन्त्रित किया। जब सूरिजी दरबार में पहुंचे तब सम्राट ने अपने दरबारियों सहित खड़े होकर उनका आदरातिथ्य किया। जब सम्राट अकबर को यह मालम हुआ कि सूरीश्वर गंधार से ठेठ सीकरी तक पैदल आये हैं, और जैन मुनि अपने भाचार के लिये पैदल ही. विहार करते हैं, तथा शुद्धाहार और बिहार द्वारा अपनी आत्मा को पवित्र रखते हैं और तपस्या के द्वारा रागद्वेष को जीत कर सकल विश्व के सभी जीवों के प्रति विशुद्ध प्रेम की वर्षा करते हैं, तब उनके आश्चर्या का पार न रहा। इसके बाद आचार्य देव ने उक्त दरबार में संसार और लक्ष्मी की अस्थिरता, देव गुरु धर्म का स्वरूप, मुनिजनों के अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिगृह आदि पाँच व्रतों का बहुत ही प्रभावशाली ढंग से विवेचन किया। अकबर और उसके विद्वान् दरबारी लोग सूरिजी के व्याख्यान से. अत्यन्त ही विस्मित हुए । तदनंतर अकबर ने उन्हें अपने जन्मग्रह का फल बतलाने के लिये कहा पर सूरिजी ने झट से जबाब दिया कि मोक्ष पंथ के अनुयायी इन बातों की ओर ध्यान भी नहीं देते। - इसके बाद श्री हीरविजयसूरिजी नाव द्वारा यमुना पार कर आगरे के पास के शौरीपुर के तय - स्थान में गये और वहाँ दो प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा कर आगरे चले आये। आगरे में आपने श्री चिंतामणि पाश्र्वनाथ की प्रतिष्ठा की। तदनन्तर शेख अबुलफजल के निमन्त्रण पर आप फतहपुर सीकरी के लिये. प्रस्थान कर गये। ____ फतहपुरसीकरी पहुंचने पर सम्राट अकबर ने आपका बड़ा भारी स्वागत किया। सम्राट् मे आपसे हाथी, घोड़े आदि की भेंट स्वीकार करने की प्रार्थना की। पर आपने सम्राट को साफ शब्दों में.
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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