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________________ ओसवाल जाति और आचार्य देवसुन्दरसूरि आप बड़े योगाभ्यासी और मंत्र तंत्रों के ज्ञाता थे । निमित्त शास्त्र के भी भाप पारगामी विद्वान थे। कुछ राजाओं पर भी आपका प्रभाव था । संवत् १४२० में आप को सूरिपद प्राप्त हुआ । आप के चार शिष्य थे । सोमसुन्दरसूरि भाप उपरोक्त देवसुन्दरसूरि के शिष्य थे। आप के कोई ढाईसौ शिष्य थे । कहा जाता है कि एक समय किसी द्वेषी मनुष्य ने आप का वध करने के लिये कुछ आदमियों को लालच देकर के भेजा । जब वे लोग आप को मारने के उद्देश्य से आप के पास पहुँचे तब भाप की परम शांतिमय मुद्रा को देख कर बहुत विस्मित हुए और मन में विचार करने लगे कि अहिंसा और शांति के परमाणु बरसाने वाले इस परम योगिराज को मार कर हम किस भव में छूटेंगे। यह विचार कर वे आचार्य श्री के पैरों पढ़ कर क्षमाप्रार्थना करने लगे। श्री सोमसुन्दरजी महाराज बहुत प्रभावशाली साधु थे। आप संवत् १४५० में विद्यमान थे । मुनिसुन्दरसूरि आप श्री सोमसुदरसूरि के पाट पर विराजम न हुए। आप महान् विद्वान् थे । संवत् १४७८ आपको आचार्य का पदवी मिली। उपदेश रत्नाकर, अध्यात्म कल्पवुन आदि कई ग्रंथ आप की अगाध विद्वता के परिचायक हैं । आप सरस्वती की उपाधि से भी विभूषित थे । गुजरात का सुलतान मुजफ्फरखान आपको बहुत मानता था । उसने भी आप को कई सम्मानपूर्वक उपाधियाँ प्रदान की थी । आप के लिये यह कहा जाता है कि आप नित्य प्रति १००० श्लोक कंठस्थ कर लेते थे । आपके उपदेश से कई राजाओं ने अहिंसा धर्म को स्वीकार किया था। बड़नगर के देवराजशाह नामक श्रावक ने कोई ३२०००) खर्च करके आप को सूरिपद प्राप्त होने के उपलक्ष में महोत्सव किया था । रत्नशेखरसूरि आप मुनि सुन्दरसूरि के शिष्य थे । आप भी महान् विद्वान और प्रतिभाशाली साधु थे । आप ने श्राद्धप्रतिक्रमण वृत्ति, श्राद्धविधि सूत्र वृत्ति लघुक्षेत्र समास तथा भाचार प्रदीप आदि कई ग्रंथ रचे थे। २११
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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