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________________ सार्वजनिक संस्थाएं के व्यवहारिक, नैतिक एवं धार्मिक जीवन को उपबनाने का पूर्ण प्रवन किया जाता है। संस्था को व्यवस्थित रूप से संचालित करने के लिये पन्यासबी. ललित विजयजी महाराज अपना पूर्ण समय दे रहे हैं। बालाश्रम की सुंदर व्यवस्था एवं भव्य इमारतें दर्शनीय हैं। श्री नेमिनाथ ब्रह्मचर्याश्रम चांदवड (नाशिक)-इस गुरुकुल की स्थापना संवत् १९८३ में महावीर जैन पाठशाला के रूप में हुई थी। श्रीमान् सुमति मुनिजो के उपदेश से इस संस्था को उत्कृष्ट रूप दिया गया। चांदवड़ के समीप बम्बई भावरा रोड पर प्राचीन डिस्पेंसरी की भव्य बिल्डिग हस्तगत करने में इस संस्था के सेक्रेटरी श्री केशवलाम्बी श्रावड़ ने बहुत परिश्रम उठाया। इस संस्था का प्रबंध खानदेश तथा महाराष्ट्र प्रान्त के गण्यमान्य सबों की एक कमेटी के जिम्मे है। सेठ मेघजी भाई सोज. पाल बम्बई निवासी आश्रम में एक मंदिर भी बनवा रहे हैं। श्री राजमलजी ललवाणी, सुगन्धचन्द्रजी लणावत, व इन्द्रचन्दजी लुणिया मादि संजनों में संस्था में मच्छी सहायता पहुंचाई है। इस संस्था के ब्रह्मचारियों ने विभिन्न प्रकार को शारीरिक कसरत एवं योगासनों में उत्कृष्ट जानकारी रखने के कारण बहुत प्रशंसा प्राप्त की है। संस्था में सातवीं काल तक पढ़ाई होती है। श्री फतेचन्द जैन विद्यालय चिंचव ( पूना)-संवत् १९८४ में पेमराजजी महाराज के उपदेश से इस संस्था की स्थापना हुई। पूना, चिंचपद तमाकोनावला के ५ गृहस्थों के एक ट्रस्ट के जिम्मे संस्था का प्रबंध भार है। संस्था से २०० छात्र अभी शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं। वहाँ महाजनी, धार्मिक प्रवेशिका व अंग्रेज IV तक पढ़ाई होती है। इस समय मन्त्र पढ़ते है, तथा ३० छात्रों के रहने का प्रबंध विद्यालय के जिम्मे है। इस संस्था के अध्यक्ष चिंचवड़ के सेठ रामचन्द्र पनमचन्द्र लूकड़ हैं। ___ कुमारसिंह हॉल कलकत्ता-यह संस्था भारतवर्ष की उन प्राइवेट संस्थाओं में से एक है जो अपने ढंग का एक खास आदर्श उपस्थित करती हैं। इसके अन्तर्गत प्राचीन वस्तुओं का, शिलालेखों का, मूर्तियों का, सिकों का-तथा इसी प्रकार अन्य कई प्राचीन ऐतिहासिक सामग्रियों का अत्यंत ही अनूठा एवं मनोमुग्ध कारी संग्रह है। बात यह है कि वो तो भारतवर्ष के अन्तर्गत प्राचीन ऐतिहासिक संग्रहालयों का अभाव नहीं है, लेकिन यह एक प्राइवेट संस्था है और एक ही शक्ति के द्वारा बहुतसी प्राचीन सामग्रियों से सजाई गई है। भारत हृदय सम्राट महात्मा गांधी, देशरत पं० जवाहरलालजी नेहरू आदि पूज्य महानुभावों ने भी इसकी मुक्त कंठ से प्रशंसा की है। इस प्राचीन संग्रहालय के संग्रहकर्ता प्रसिद जैन पुरातत्ववेत्ता श्री पूरणचन्दजी नाहर एम० ए० बी० एल हैं। आपकी सुरुचि पूर्ण ऐतिहासिक संग्रह शक्ति ने आपके नाम को अमर कर दिया है। सुराणा पुस्तकालय चुरू-चुरू के सुराणा परिवार की यह प्राइवेट कायमेरी है जो बड़ी ही विशाल एवं जैन प्राचीन शास्त्रों से परिपूर्ण भरी है । आत्म नन्द जैन सभा अम्बाला यह सभा संवत् १९१२ में धार्मिक एवं शिक्षा की उन्नति के उद्देश्य को लेकर स्थापित हुई। इस संस्था की उन्नति में अम्बाला के सुप्रख्यात एडवोकेट लाला गोपीचंदजी बी० ए० ने बहुत योग दिया। वर्तमान में सम्मान में इस संस्था द्वारा श्री आत्मानंद जैन हॉपस्कूल, प्रायमरी स्कूल, कन्या पाठशाला, रीडिंग रूम, ट्रेक्ट सोसापटी, ग्रंथ भण्डार, जैन स्कूल आदि र संस्थाएँ
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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