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________________ धार्मिक क्षेत्र में श्रीसवाल नाति हैं। इन लोगों के ठहरने के लिये बाबू पूर्णचन्द्रजी नाहर की स्वर्गीया पत्नी श्रीमती कुन्दन कुमारी की स्मृति में एक दीनशाला बनवाई गई है, जिसका उद्घाटन कुछ वर्ष पूर्व आगरा के सुप्रसिद्ध देशभक्त श्रीयुत चांदमलजी वकील के कर कमलों द्वारा हुआ। आज कल इसी दीनशाला में पटना डिस्ट्रिक्ट बोर्ड की तरफ से एक आयुर्वेद चिकित्सालय भी खोला गया है जहाँ से रोगियों को बिना मूल्य औषधि दी जाती है। पांवापुरी में भगवान् महावीर के निर्वाणोत्सव पर कार्त्तिक शुक्ल प्रतिपदा को बड़े धूम धाम से रथोत्सव मनाया जाता है। चम्पापुरी पाठक जानते हैं कि चम्पापुरी जैनियों का महा पवित्र और प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। जैन शास्त्रों के अनुसार यहाँ पर इनके बारहवें तीर्थंकर श्री वासुपूज्य स्वामी के पंच कल्याणक हुए हैं। इसके अति-रिक और भी कई दृष्टि से यह स्थान महत्व पूर्ण है । राजगृह के सुप्रसिद्ध श्रेणिक राजा का बेटा कोणिक, जिसे अजातशत्रु व अशोकचन्द्र भी कहते हैं, राजगृह से अपनी राजधानी उठाकर वहाँ लाया था। जैन शास्त्रों में कथित सुभद्रासती भी इसी नगर की रहनेवाली थी । भगवान महावीर ने यहाँ तीन चौमासे किये थे । उनके मुख्य श्रावकों में से कामदेव नामक श्रावक यहाँ का निवासी था । जैनागम के प्रसिद्ध दश वैकालिक सूत्र भी श्री शथंग्भयसूरि महाराज ने इसी नगर में रचा था। जैनियों के बारहवें तीर्थकर श्री वासु पुज्य स्वामी का व्यवन, जन्म, दीक्षा, केवल-विज्ञान और मोक्ष आदि पाँच कल्याणक इसी नगर में हुए । इस कारण यह स्थान बड़ा पवित्र समझा जाता है । -इस महा पवित्र तीर्थ स्थान में भी धार्मिक ओसवालों ने कई मन्दिर तथा बिम्व बनवाये तथा कई चरणपादुकाओं की स्थापना कीं । इस सम्बन्ध के पत्थरों पर खुदे हुए कई लेख वहाँ पर मौजूद हैं। संवत् १६६८ में मुर्शिदाबाद के प्रसिद्ध जगत सेठ के पूर्वज साह हीरानंदजी ने १५ वे तीर्थङ्कर श्री धर्मनाथ स्वामी का बिम्ब स्थापित किया जिसकी प्रतिष्ठा श्री जिनचन्द्रसूरि ने को । संवत् १८२८ के बैसाख सुद ११ को तपेगच्छ के आचार्य श्री वीर विजयसूरि ने श्री वासु पूज्य स्वामी के बिम्ब की प्रतिष्ठां की । संवत् १८५६ की वैसाख मास की शुक्लपक्ष की तृतीया को तीर्थाधिराज चम्पापुरी में श्री वासुपूज्य स्वामी का जिन विम्ब श्री वेताम्बर संघ की ओर से गणचन्द्र कुलालंकार ने स्थापति किया जिसकी प्रतिज्ञा श्री सर्व सूरि महाराज ने की । संवत् १८५६ के वैसाख मास के शुक्लपक्ष की तीज को श्री अर्ज सनाथ स्वामी के बिम्ब की प्रतिष्ठा की गई । इसके प्रतिष्टाचार्य्य श्री जियचन्द्र सूरि थे । इसी दिन बीकानेर निवासी कोठारी अनूपचन्द के पुत्र जेठमल ने श्री चन्द्रप्रभू के जिन बिम्ब की खरतर गच्छचार्य्य श्री जिनचन्द्र सूरि के द्वारा प्रतिष्ठा करवाई । १७३
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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