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________________ धार्मिक क्षेत्र में श्रोसवाल नाति बड़ी आबादी थी। यहां पर कई लक्षाधीश और कोव्याधीश जैन गृहस्थ थे। तपेगच्छ और खरतरगच्छ का यहां बड़ा प्राबल्य था। तपेगच्छ के सुप्रख्यात्. आचार्य हरिविजयसूरि, विजयसेन और विजयदेव तथा खरतरगच्छ के जिनचन्द्र, जिनसिंघ और जिनराज आदि भाचार्यों ने यहां पर कई चातुर्मास किये। इस मगर में हाल में १२ जैन मन्दिर हैं। इन मन्दिरों की कई प्रतिमाओं की वेदियों पर कई लेख खुदे हुए हैं। इन लेखों में से पहले तीन लेख वहां के नये मन्दिर की प्रतिमा के ऊपर खुदे हुए हैं। उनमें से एक लेख संवत् १५६९ का है। उससे मालूम होता है कि स्तम्भ तीर्थ (खम्भात) के भोसवाल जाति के शाह. जीरागजी ने अपने कुटुम्ब के साथ सुमतिनाथजी की प्रतिमा पधराई। इसकी प्रतिष्ठा तपेगच्छ के सुमति साधुसूरि के पट्टधर श्रीहेमविमलसूरि थे। इनके साथ महोपाध्याय अनन्त हंसगणि आदि का शिष्य परिवार था । - दूसरा लेख संवत् १५०७ की फाल्गुन बुदी ३ बुधवार का है। उससे मालूम होता है कि भोसवार जाति के बोहरा गौत्र के एक सजन ने अपने पिता के कल्याणार्थ शन्तिनाथ की प्रतिमा बनवाई भौर खरतरगच्छ के श्री जिनसागरसूरि से उसकी प्रतिष्ठा करवाई। इस नगर में चौपड़ों का मन्दिर' नामक एक देवालय है जिसकी प्रतिमाओं पर कुछ लेख खुदे हुए हैं। एक लेख संवत् १६७. की ज्येष्ठ वदी पंचमी का है। उससे मालूम होता है कि उस समय हिन्दुस्थान पर मुगल सम्राट जहांगीर राज्य करता था और शाहज़ादा शाहजहां युवराज पद पर था। ओसवाल जाति के गणधर चौपड़ा गौत्र के सिंघवी आसकरग ने अपने बनाये हुए संगमरमर के पत्थर के सुन्दर बिहार में तथंकर शान्तिनाथजी की मूर्ति की स्थापना की और उसकी प्रतिष्ठा वृहद् खरतरगच्छ के भाचार्य जिनराजसूरि ने की। इस लेख में उक्त सिंघी आसकणजी के पूर्वजों तथा कुटुम्बियों का वंश वृक्ष भी दिया हुआ है। इन्हीं सिंघवी आसकरणजी ने आबू और शजय के लिये संघ निकाले थे जिनके कारण इन्हें संघपति का पद प्राप्त हुआ था। इन्होंने जिनसिंहसूरि की आचार्य पदवी के उपलक्ष्य में नन्दी महोत्सव किया था। * . इसी प्रकार इन्होंने और भी कई धार्मिक कार्य किये। इसी लेख में प्रतिष्ठाकर्ता आचार्य की वंशावली भी दी गई है जिसमें प्रथम जिनचन्द्रसूरि का नाम है। ये वे ही गिनचन्द्रसूरि हैं जिन्होंने सम्राट अकबर को प्रतिबोध दिया था और उक्त सम्राट ने उन्हें "युग प्रधान" की पदवी प्रदान की थी । उनके पीछे जिनसिंहसूरि का नाम दिया गया है। इन्होंने काश्मीर देश में प्रवाप किया था। इतना . . धमाकल्याण गणि की खरतरगच्छ पट्टावली के अनुसार यह महात्सव संवत् १६७४ की फाल्गुन सुदी ७ को किया गया था। . . . . . . .. .. .
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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