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________________ श्रीसवाल जाति का इतिहास हुई है। चाहे जो हो पर इन पत्थरों को देखने से यह पता तो आसानी से लग जाता है कि यहाँ पर पहिले बहुत अधिक देवालय बने हुए थे । कुंभारिया में खास कर के ६ मन्दिर हैं जिनमें पाँच जैनियों के और एक हिन्दुओं का है । इन मन्दिरों की समय समय पर मरम्मत होती रही है जिससे नया और जूना काम भेल-सेल हो गया है। इन मन्दिरों के स्तम्भ द्वार तथा छत में जो काम किया गया है, वह बड़ा ही सुन्दर और उत्तम है। नेमिनाथ का मन्दिर जैन मन्दिरों के समूह में सब से बड़ा और महत्वपूर्ण मन्दिर श्रीनेमिनाथ का है। इसमें बाहर के द्वार से लेकर रंगमण्डप तक एक चढ़ाव बना है। देवगृह में एक देवकुलिका, एक गूढ़ मण्डप और एक परशाल बनी है। देवकुलिका की दीवारें पुरानी हैं, पर उसका शिखर और गूढ़ मण्डप के बाहर का भाग नया बना हुआ है। इस मंन्दिर का शिखर तारंगाजी के जैन मन्दिर जैसा है। इसकी परसाल के एक स्तम्भ पर एक लेख है, जिससे पता चलता है कि ईसवी सन् १२५३ में भासपाल नामक किसी व्यक्ति ने इसे मँधाई थी। रंगमण्डप की दूसरी बाजू पर ऊपर के दरवाजे में तथा अन्त के २ थम्भो के बीच की कमानों पर मकराकृति के मुखों से शुरू करके एक सुन्दर तोरण कोरा गया है जोकि देलवाड़ा के विमलशाह वाले मन्दिर के तोरण के समान हैं । मन्दिर के दोनों ओर मिलाकर ८ देवकुलिकाएँ हैं। दाहिनी बाजू वाली देवकुलिका में आदिनाथ की और बाईं बाजूवाली देवकुलिका में पार्श्वनाथ की भव्य मूर्तियां विराजमान हैं। इस मन्दिर में कई शिलालेख हैं । एक शिलालेख इस मन्दिर की नेमिनाथ स्वामी की खास प्रतिमा के आसन के नीचे खुदा हुआ है। जिसका भाव इस प्रकार । संवत् १६७५ के मात्र खुद्दी ४ को शनिवार के दिन ओसवाल जाति के बोहरा गौत्रीय राजपाल ने श्री नेमिनाथ के मन्दिर में नेमिनाथ का विम्ब स्थापित किया, उसकी प्रतिष्ठा हीरविजयसूरि के पट्टधर आचार्य श्री विजयसेनसूरि के शिष्य श्री विजयदेवसूरि ने पण्डित कुशल सागर गणि आदि साधुओं के साथ करवाई। इसी प्रकार एक शिलालेख श्रीमाल ज्ञाति के शाह रंगा का और एक पोरवाल जाति के श्रेष्ठि बहाड़ का भी खुदा हुआ है। महावीर का मन्दिर नेमिनाथ के देवालय के पूर्व की ओर यह मन्दिर बना हुआ है। बाहर की दो सीढ़ियों से एक. माच्छादित दरवाजे में प्रवेश किया जाता है, जो अभी नया बना है। यह मन्दिर भी बड़ा सुन्दर बना १५४
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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