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श्रोसवाल जाति का इतिहास
कला का सचिा परिचय दिया है। हम भी इस ग्रंथ में जैसलमेर के कुछ जैन मंदिरों के चित्र दे रहे हैं। इनसे पाठकों को वहाँ की शिल्पकला को उत्कृष्टता का थोड़ा परिचय अवश्य होगा। इसमें विशेषता तो इस बात की है कि जैसलमेर जैसे दुर्गम स्थान पर भारत के शिल्पकला विशारदों ने जो भव्य मंदिर बनवाये है, वे तत्कालीन जैन श्रीमानों की धर्म-परायणता और शिल्प-प्रेम के ज्वलंत उदाहरण हैं।
इन मंदिरों में पाषाण में जिस कौशल्य से शिल्पी मूर्तियाँ बनाई गई हैं; वह उस समय की कारीगरी पर बहुत ही अच्छा प्रकाश डालती हैं। आप शान्तिनाथजी के मंदिर को ले लीजिये। उक्त मंदिर के ऊपर का दृश्य क्या ही सुन्दर है। इसे देखकर शिल्प-विद्या-विशारद यह कहे बिना न रहेंगे कि इसमें शिल्पकला को सर्व प्रकार की श्रेष्ठता विद्यमान है। मंदिर के ऊपर खुदे हुए मूर्तियों के आकार बहुत ही बारीक अनुपात से बनाये गये हैं। यही कारण है कि ऊपर से नीचे तक के सम्पूर्ण दृश्य चिताकर्षक है। कहीं भी सौन्दर्य की कमी नहीं मालूम होती।
इसके अतिरिक्त इसमें यह भी एक विशेषता है कि बहुत सी मूत्तियों के रहने पर भी दृश्य भर कर अथवा सधन नहीं दिखाई पड़ते। इस मंदिर पर की गई अद्भुत् शिल्पकला के काम को देखकर जावा के सुप्रसिद्ध बोरोबोडू नामक स्थान के प्राचीन हिन्दू मंदिर नाम स्मरण हो आता है क्योंकि उक्त मंदिर के ऊपर का दृश्य और मूर्तियों के अनुपात भी प्रायः इसी प्रकार के हैं।
जैसलमेर के श्रीपार्श्वनाथजी के मंदिर की कारीगरी भी अपने ढंग को अपूर्व है। वहाँ की मूर्तियों में भारतीय कला की श्रेष्ठता सकती है। उनमें सौन्दर्य और गम्भीर्य्य दोनों का समावेश है। अमर सागर में भी वर्तमान शताब्दी की कारीगरी का उज्जवल उदाहरण दिखाई देता है। उक्त मंदिर के शिल्प-कौशल्य को देखने से उसके निर्माता के अगाध शिल्प प्रेमका परिचय मिलता है।
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