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________________ धार्मिक क्षेत्र में नाल जाति खेल हैं। जिनमें एक धौलका के राणा वीरधवल के पुरोहित तथा कीर्त्तिकौमुदी, सुरथोत्सव आदि काव्यों के रचयिता प्रसिद्ध कवि सोमेश्वर का रचा हुआ है। उसमें वस्तुपाल तेजपाल के वंश का वर्णन, भरजोराज से लगाकर वीरधवल तक की नामावली, आबू के परमार राजाओं का वृतान्त तथा मन्दिर और हस्ति• शाला का वर्णन है । यह ७४ श्लोकों का एक छोटा सा सुन्दर काव्य है । इसीके पास के दूसरे शिक्षालेख में, जो बहुधा गद्य में लिखा है, विशेष कर इस मन्दिर के वार्षिकोत्सव की जो व्यवस्था की गई थी, उस का वर्णन है। इसमें आबू पर के तथा उसके नीचे के अनेक गाँवों के नाम लिखे गये हैं, जहाँ के महाजनों मे प्रति वर्ष नियत दिनों पर यहाँ उत्सव करना स्वीकार किया था। इसी से सिरोही राज्य की उस समय की उन्नत दशा का बहुत कुछ परिचय मिलता है । इन लेखों के अतिरिक्त छोटे २ जिनालयों में से बहुधा प्रत्येक के द्वार पर भी सुम्दर लेख सुवे इस मन्दिर को बनवा कर तेजपाल ने अपना नाम अमर कर दिया, इतना ही नहीं किन्तु उसने जिनालय बने हुए हैं प्रत्येक छोटा जिनालय दोनों ओर बड़ी कारी क्योंकि जो छोटे ५२ खुदवा दिये हैं । मुख्य मन्दिर के द्वार की लेख हुए हैं। अपने कुटुम्ब के अनेक स्त्री पुरुषों के नाम अमर कर दिये, उनके द्वार पर उसने अपने सम्बन्धियों के नाम के सुन्दर उनमें से किसी न किसी के स्मारक में बनवाया गया है। गरी से बने हुए दो ताक हैं जिनको लोग देराणी जेठाणी के आलिये कहते हैं और ऐसा सिद्ध करते हैं कि इनमें से एक वस्तुपाल की स्त्री ने तथा दूसरा तेजपाल की स्त्री ने अपने अपने खर्च से बनवाया था । महाराज शान्तिविजयजी की बनाई हुई 'जैन तीर्थं गाइड" नामक पुस्तक में भी ऐसा ही लिखा है लेकिन स्वीकार करने योग्य नहीं है। क्योंकि ये दोनों आले ( ताक ) वस्तुपाल ने अपनी दूसरी स्त्री सुहदादेवी के श्रेय के निमित्त बनवाये थे। सुहदादेवी पचन (पाटन) के रहने वाले मोद जाति के महाजन ठाकुर ( ठक्कुर) जाल्हणा के पुत्र ठाकुर आसा की पुत्री थी। इस प्रकार का वृतान्त उन ताकों पर खुदे हुए लेखों से पाया जाता है। इस समय गुजरात में पोरवाल और मोद जाति में परस्पर विवाह नहीं होता है । परन्तु इन लेखों से पाया जाता है कि उस समय उनमें परस्पर विवाह होता था । इस मन्दिर की हस्तीशाला में बड़ी कारीगरी से बनाई हुई संगमरमर की दस हथनियां एक पंक्ति में खड़ी हैं जिन पर चंडप, चण्डप्रसाद, सोमसिंह, अश्वराज, लूणिय, मस्कादेड वस्तुपाल, तेजपाल, जैसिंह और लावण्यसिंह ( लूणसिंह ) की बैठी हुई मूर्त्तियाँ थीं । परन्तु अब उनमें से एक भी नहीं रही। इन हथिनियों के पीछे की पूर्व की दीवार में १० ताक बने हुए हैं जिनमें इन्हीं दस पुरुषों की स्त्रियों सहित पत्थर की खड़ी हुई मूर्तियाँ बनी हैं जिन सब के हाथों में पुष्पों की मालाएँ हैं । वस्तुपाल के सिर पर पाषाण का छत्र भी है। प्रत्येक पुरुष और स्त्री का नाम मूर्ति के नीचे खुदा हुआ है। अपने १४३
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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