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________________ औसवाल जाति का इतिहास का बनाया हुआ है। वे गुजरात के धौलका प्रदेश के सोलंकी राणा बीरधवल के मन्त्री थे। कहना न होगा कि जैन तीर्थ स्थानों के निमित्त उनके समान द्रव्य खर्च करने वाला दूसरा कोई भी पुरुष इतिहास के पृष्ठों पर नहीं है। यह मन्दिर मन्त्री वस्तुपाल के छोटे भाई तेजपाल ने अपने पुत्र लणसिंह तथा अपनी स्त्री अनुपमादेवी के कल्याण के निमित्त अटूट द्रव्य लगाकर वि० सं० १२८७ में बनवाया था। यही एक दूसरा मन्दिर है जो कारीगरी में उपरोक्त विमलशाह के मन्दिर की समता कर सकता है। ... भारतीय शिल्प सम्बन्धी विषयों के विशेषज्ञ फग्र्युसन साहब अपनी ' Pictures Illustrations of Ancient architecture in India' नामक पुस्तक में लिखते हैं कि "इस मन्दिर में जो कि संगमरमर का बना हुआ है अत्यन्त परिश्रम सहन करने वाली हिन्दुओं की टाँकी से फीते जैसी बारीकी के साथ ऐसी मनोहर आकृतियाँ बनाई गई हैं कि अत्यन्त कोशिश करने पर भी उनकी नकल कागज पर बनाने में मैं शक्तिवान नही होसका।" यहाँ के गुम्मज की कारीगरी के विषय में कर्नल टॉड से लिखते हैं कि"इसका चित्र तयार करने में अत्यन्त कुशल चित्रकार की कलम को भी महान् परिश्रम करना गुजरात के प्रसिद्ध ऐतिहासिक रासमाला के कर्ता फारवस साहब लिखते हैं किः "इन मंदिरों की खुदाई के काम में स्वाभाविक निर्जीव पदार्थों के चित्र बनाये हैं। इतना ही नहीं, किन्तु सांसारिक जीवन के दृश्य व्यवहार तथा नौका शास्त्र सम्बन्धी विषय एवं रणखेत के युद्धों के चित्र भी खिंचे हुए हैं।" इन मन्दिरों की छतों में जैन धर्म की अनेक कथाओं के चित्र भी खुदे हुये हैं।" यह मन्दिर भी विमल के मन्दिर के ही समान बनावट का है। इसमें मुख्य मन्दिर, उसके आगे गुम्मजदार सभा-मण्डप और उनके अगल बगल पर बेटे २ जिनालय तथा पीछे की ओर हस्तीशाला है । इस मन्दिर में मुख्य मूर्ति नेमिनाथ की है। और छोटे २ जिनालयों में अनेक मूर्तियाँ हैं। यहां पर दो बड़े २ शिन . . कर्नल यड के विलायत पहुँचने के पीछे 'मिसेज विलियम हण्टर बेर' नाम की एक अंग्रेज महिला ने अपना तयार किया हुआ वस्तुपाल तेजपाल के मन्दिर के गुम्बज का चित्र टॅड साहब को दिया। उस चित्र को देख कर उनको इतना हर्ष हुआ कि उन्होंने अपनी ट्रेवलर्स इन वेस्टर्न इन्डिया नामक पुस्तक उसी अंग्रेज महिल को समर्पित कर दी और उससे कहा कि तुम बाबू नहीं गई प्रत्युत प्राबू को यहां ले आई हो। वही सुन्दर चित्र उन्होंने अपनी पुस्तक के प्रारम्भ में दिया है।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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