SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पार्मिक क्षेत्र में श्रीसवाल नाति भोसवंश के सुप्रसिद्ध भाभू सेठ के कुल में शिवराज सोनी नामक एक पुण्यशाली सेठ हुआ। उसके पश्चात क्रमशः सीधर, परवत, काला, बाघा और बछिया की पाँच पुश्ते और हुई । बच्छिया के सुहासिनी नामक स्त्री से तेजपाल नामक महाप्रतापी पुत्र हुआ। शाह तेजपाल हरिविजयसूरि और उनके शिष्य विजयसेनसूरि का परम भक्त था । इन आचार्य श्री के उपदेश से उसने जिन मन्दिरों के बनाने में और संघ भक्ति के करने में विपुल द्रव्य खर्च किया । संवत् १६४६ में उसने अपने जन्मस्थान खम्मात में सुपार्श्वनाथ तीर्थङ्कर का भव्य चैत्य बनाया । संवत् १५४७ में आनन्दविमल सूरि के उपदेश से कर्माशाह ने शत्रुजय तीर्थ के इस मन्दिर का पुनरुद्धार किया था । मगर अत्यंत प्राचीन होने की वजह से थोड़े ही समय में यह मूल मन्दिर फिर से जर्जर की तरह दिखाई देने ला गया । यह देखकर शाह तेजपाल ने फिर से इस मंदिर का पुनरुद्धार प्रारंभ किया और संवत् १६४९ में यह मंदिर बिलकुल नया बना दिया गया और इसका नन्दिवर्द्धन नाम स्थापित किया। साथ ही प्रसिद्ध आचार्य श्री हीरविजय सूरि के हाथों से इसकी प्रतिष्ठा करवाई जिसमें उसने विपुल द्रव्य खर्च किया। शत्रुञ्जय के ऊपर इस प्रतिष्ठा के समय अगणित मनुष्य एकत्र हुए थे। गुजरात, मेवाड़, मारवाद, दक्षिण और मालब आदि देशों के हजारों यात्री यात्रा के लिये आये हुए थे, जिनमें ७२ तो बड़े २ संघ थे। स्वयं हीरविजयजी के साथ में उस समय करीब एक हजार साधुओं का समुदाय था। कहना न होगा कि इन सब लोगों के लिये रसोई इत्यादि की व्यवस्था सोनी तेजपाल के तरफ से की गई थी। शत्रुञ्जय तीर्थ और वर्द्धमानशाह पर्वमानशाह ओसवाल जाति के कालण गौत्रीय पुरुष थे। ये कच्छ प्रान्त के अलसाणा नामक गाँव के रहने वाले थे। ये बड़े धनाड्य और व्यापार निपुण पुरुष थे। संयोगवश इस अलसाणा ग्राम के ठाकुर की कन्या का सम्बन्ध जामनगर के जाम साहब से हुआ, जब बिदाई होने लगी तब उस कन्या ने दहेज में, वर्द्धमानशाह और उनके सम्बन्धी रायसीशाह को जामनगर में बसने के लिये मांगा। तदनुसार ये दोनों ओसवाल जाति के बहुत से अन्य लोगों के साथ जामनगर में आ बसे। जामनगर में रहकर ये दोनों लक्ष्मीपति अनेक देशों के साथ व्यापार करने को, और वहाँ की जनता में बड़े लोकप्रिय हो गये। वहां उन्होंने लाखों रुपये खर्च करके संवत् ११०६ में बड़े बड़े विशाल जैन मन्दिर निर्माण करवाये। उसके पश्चात् वर्द्धमानशाह ने शत्रुञ्जय तीर्थ की यात्रा की और वहां भी जैन मन्दिर बनवाये इनका जामनगर के राजदरबार में बहुत मान था और जाम साहब भी प्रत्येक महत्व पूर्ण कार्य में इनकी सलाह लेते रहते थे। इन वर्द्धमानशाह का एक लेख शत्रुक्षय पहाड़ पर विमलवसहि १३५
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy