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________________ धार्मिक क्षेत्र में प्रोसवाल जाति (२) दिन में एक बार भोजन करूँगा (३) ब्रह्मच से रहूँगा (0) शारदम्यों का प्रयोग न करूँगा और (५ ) छः विषय में प्रतिदिन केवल एक विषय का सेवन करूंगा। धर्म वीर समराशाह की इस भीष्म प्रतिज्ञा को सुनकर तत्कालीन आचार्य श्री सिदसूरिजी बड़े प्रसव हुए और उन्होंने समराशाह की सफलता की मनोकामना की। . ___ सबसे पहले समराशाह ने गुजरात के तत्कालीन अधिकारी अलपखान का पुनरुद्धार के लिए हुक्म और शाहीफर्मान प्राप्त किया। उसके पश्चात् सूर्ति निर्माण के लिए आरासण खान से संगमरमर की पुतली मँगवाई । उस समय अरासणखान का अधिकारी महिपालदेव था जो त्रिसङ्गमपुर में राज्य करता था। इस राजा के मंत्री का नाम पाताशाह था। जब समराशाह के भेजे हुए सेवक बहुमूल्य भेटों को लेकर महिपालदेव के सम्मुख पहुंचे तो वह बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने वे सब भेटे आदर पूर्वक वापस कर दी और स्वयं समराशाह के सेवकों को लेकर संगमरमर की खान पर गया, और स्फटिक मणि के सदृश निर्दोष, सुन्दर फलही निकलवाकर समराशाह के सेवकों को देदी। इस फलही से उस समय के उत्तम शिल्पशास्त्रियों ने मूर्ति बनाकर तैय्यार की। इधर जो देवमन्दिर देवकुलिकाएँ, और मण्डप इत्यादि क्षत विक्षत हो गये थे, वे भी सब तैयार करवाकर नवे बना लिये गए इसके अतिरिक्त देशलशाह ने रथ के आकार का एक नया मन्दिर और बनवाया। सब काम हो जाने पर देशलशाह ने प्रतिष्ठा महोत्सव का मुहूर्त निकाला और सारे श्री संघ को दूर २ तक निमंत्रण भेजेगए । इस प्रकार बड़ी धूम धाम से लाखों रुपये खर्च करके धर्मवीर देशल. शाह और समराशाह ने जिन बिम्ब की प्रतिष्ठा करवाई। इस प्रतिष्ठा के समय में बहुत बड़ा उत्सव किया गया। शत्रञ्जय तीर्थ और धर्मवीर कर्माशाह संवत् १५८७ में चित्तौड़ के सुप्रसिद्ध सेठ कर्माशाह ने इस महान् तीर्थ का पुनरुद्धार करके फिर से इसकी नई प्रतिष्ठा करवाई । उसका पूरा विवरण वहाँ के सबसे बड़े और मुख्य मंदिर के द्वार पर एक • मण्डप के सम्मुख बलानक मण्डप का उद्धार श्रेष्ठि त्रिभुक्नसिंह ने करवाया, स्थिरदेव के पुत्र शाह लंदुक मे ४ देव कुलिकाएँ बनवाई जैत्र और कृष्ण नामक संघवियों ने जिन बिम्ब सहित भाठ दोहरियाँ करवाई पेथइशाह के बनाए हुए सिद्ध कोटाकोटि चैत्य का उद्धार हरिश्चन्द्र के पुत्र शाह केशव ने कराया इसी प्रकार और भी श्रावकों ने कई छोटे बड़े कार्य करवाये। -मुनिज्ञान सुन्दरजी कृत समरसिंह चरित्र
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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