SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ओसवाल जाति का राजनैतिक व सैनिक महत्व लिखा है कि एक बार किसी शत्रु ने राजलदेसर पर चढ़ाई की तब मेहता हरिसिंहजी और राजा रायसिंहजी के पुत्र कुँवर जयमलजी बड़ी बहादुरी के साथ युद्ध करते हुए मारे गये और “जुझार" हुए । जुझार यह शब्द मारवाड़ी भाषा का है जिसका अर्थ सिर कट जाने के बाद भी कुछ समय तक युद्ध करते रहना है। जिस स्थान पर आपका सिर गिरा था वह स्थान आज भी जुझारजी के नाम से प्रसिद्ध है। आज भी वहाँ उनके वंश वाले किसी शुभ कार्य पर जाते हैं और इनकी कुलदेव स्वरूप पूजा करते हैं। जिस स्थान पर आपका शव गिरा था वह स्थान मथाथल के नाम से प्रसिद्ध है। इसी खानदान में सवाईसिंहजी नामक एक सजन राजलदेसर और बीदासर के बीच में जुझार हुए। जिस स्थान पर आप जुझार हुए वहाँ इनके स्मारक स्वरूप एक चबूतरा बना हुआ है। जो अभी भग्नावस्था में है। चुरू का सुराणा खानदान-चुरू बीकानेर स्टेट में एक प्रसिद्ध स्थान है। यहाँ के सुप्रसिद्ध सुराणा परिवार में कई वीर पुरुष हो गये हैं, जिनमें जीवनदासजी का नाम विशेष प्रख्यात है। कहा जाता है कि ये भी किसी लड़ाई में जुझार हुए । आज भी राजस्थान की स्त्रियाँ इनकी वीरता के गौरव गीत गाती हैं। इन्हीं के वंश में वर्तमान में विद्याप्रेमी सेठ शुभकरणजी सुराणा विद्यमान हैं। बीकानेर राज्य के ओसवाल मुस्सुहियो और वीरों का उपरोक्त वृतान्त पढ़ने से पाठकों को यह बात अवश्य ज्ञात हुई होगी कि जिस प्रकार जोधपुर, उदयपुर आदि रियासतों के विकास एवं राज्य विस्तार में भोसवाल मुत्सुद्दियों का महत्व पूर्ण हाथ रहा है, ठीक वैसा ही हाथ बीकानेर की राजनीति के संचालन में रहा है । यहाँ सैनिक तथा राजनैतिक रंगमंच पर ओसवाल वीरों ने बड़े खेल खेले हैं जिनके पराक्रमों का वर्णन राजस्थान के इतिहास को गौरवान्वित कर रहा है। काश्मीर राजपूताने और मध्यभारत के विविध राज्यों में ओसवाल मुत्सुद्दी और सेनापतियों में जो पहले एतिहासिक काम किये हैं। उनका उल्लेख हम यथा स्थान कर चुके हैं। हम देखते हैं कि काश्मीर तक पर ओसवाल जाति के एक मुत्सुद्दी ने अपनी राजनैतिक प्रतिभा का परिचय दिया था। मेजर जनरल दीवान बिशनदासजी दूगड़ राय बहादुर सी. एस. आई. सी. आई. ई. जम्बू (काश्मीर) आपका परिवारिक इतिहास हम नीचे दूगड़ गोत्र में दे चुके हैं। आपने काश्मीर राज्य की बड़ी २ सेवाएं की। काश्मीर के भूत पूर्व महाराजा श्रीमान् प्रतापसिंहजी बहादुर ने आपके कायों की प्रशंसा करते हुए १८ सितम्बर १९२१ को आपको जो पत्र लिखा था, उसमें लिखा था कि "The unification of the Rajput community is a matter of which you who have tried to establish it may feel justly proud. The part you played in furthering this movement shall be remembered with feelings of intense gratification not only by myself but the Rajputs in general and I have no
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy