SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजनैतिक और सैनिक महत्व जाने देना । तेरी सेवा बंदगी बड़ी है । यह सेवा पुश्तदर पुश्त की है। तेरा हम पर हाथ है, सिर पर हाथ रखना । तेने हमारी जो सेवाएं की हैं, उनसे हम उऋण न होंगें। तेरी सेवाओं की तारीफ केवल यहीं पर होगी ऐसी बात नहीं वरन् स्वर्ग में भी देवता उन सेवाओं की प्रशंसा करेंगे। तेने अपने मालिक की जो बंदगी की है, उसकी कहाँ तक तारीफ लिखें। मिती आसोज सुदी १२ संवत् १८९६ । उपरोक्त खास रुक्के से महाराव हिन्दूमलजी के उस अतुलनीय प्रभाव का पता लगता है जो उनका बीकानेर के राजनैतिक क्षेत्र में था । कहने का भाव यह है कि ओसवाल मुत्सुद्दियों ने राजस्थान की मध्ययुगीन राजनीति में महान् कार्य्यं किये हैं कि जिन्हें तत्कालीन नरेशों ने भी मुक्त कंठ से स्वीकार किया है । मेहता छोगमलजी आप महाराव हिन्दूमलजी के छोटे भाई थे । आपका जन्म संवत् १८६९को माघ बुदी १० को हुआ । आप बड़े ही बुद्धिमान एवं अध्यवसायी महानुभाव थे । आप महाराजा सूरतसिंहजी के प्राइवेट सेक्रेटरी के पद पर अधिष्ठित थे । यह काम आपने बड़ी ही खूबी से किया । आपसे महाराजा साहब बहुत प्रसन्न रहते थे । इससे महाराजा साहब ने आपको रेसीडेंसी के वकील का उत्तरदायित्व पूर्णपद प्रदान किया । सम्बत् १९०९ में जब बीकानेर में सरहद्द बन्दी का काम हुआ, तब आपने इसे बड़े परिश्रम झगड़ों के बड़ी कुशलता के साथ फैसले करवा आपकी की हुई सरहद्द बन्दी से बीकानेर तत्कालीन महाराजा सरदारसिंहजी इतने और बुद्धिमानी से किया। आपने सरहद्द सम्बन्धी बहुत से दिये । इसमें आपने बीकानेर राज्य की बड़ी हितरक्षा की। राज्य की बड़ी उन्नति हुई । आपके इस कार्य्यं से बीकानेर के खुश हुए कि उन्होंने आप को अपने गले से कंठा निकाल कर पहना दिया । सम्बत् १९१४ ( ई० सन् १८५७) में जब सारे भारतवर्ष में अग्रेजों के खिलाफ भयंकर विद्रोहाग्नि धक्क उठी, तब आप बीकानेर रियासत की ओर से अंग्रेजों की सहायता करने के लिये भेजे गये । उस समय आपने वहाँ बहुत सरगर्मी से काम किया। इस कार्य के उपलक्ष में तत्कालीन अंग्रेज अधिकारियों ने आप की प्रशंसा की । • सम्वत् १९२९ में बीकानेर नरेश महाराजा सरदारसिंहजी का स्वर्गवास हो गया । इस अवसर पर आपने महाराजा डूंगरसिंहजी को राजगद्दी पर अधिष्ठित करने में बहुत सहायता पहुँचाई | यह कहने में अत्युक्ति न होगी कि महाराज डूंगरसिंहजी को बीकानेर का स्वामी बनाने में सबसे प्रधान हाथ आप का था। स्वयं महाराज इंगरसिंहजी ने तत्कालीन ए० जी० जी० को जो पत्र लिखा था, उसमें १००
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy