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________________ ओसवाल जाति का इतिहास कार्य किये जो उक्त धर्म के इतिहास में सदा चिरस्मरणीय रहेंगे। हम उन सब का वर्णन ओसवालों का धार्मिक महत्व नामक अध्याय में विस्तार पूर्वक करेंगे। करमचन्दजी की दूरदर्शिता हम मेहता करमचन्दजी की परम राजनीतिज्ञता और दूरदर्शिता के विषय में पहले थोड़ा सा लिख चुके हैं । इस सम्बन्ध में उनके जीवन की एक घटना का और उल्लेख कर पाठकों के सामने उनकी दूरदर्शिता का जाज्वल्यमान उदाहरण उपस्थित करते हैं। ... सम्राट अकबर पर, जैसा कि हम पहले कह चुके हैं, मेहता करमचन्दजी का बहुत काफी प्रभाव था। उक्त सम्राट कई वक्त उन्हें अपने दरबार में बुलाया करते थे। इस समय भी उन्होंने महाराजा राय. सिंहजी के द्वारा इन्हें अपने दरबार में बुलाया और आपका बड़ा सम्मान किया। बादशाह ने बड़ी प्रसन्नता के साथ आपको सोने के जेवर सहित एक बहुत मूल्यवान घोड़ा प्रदान किया । इतना ही नहीं, वे इनके प्रति तरह २ की कृपाएँ बताने लगे। इससे इन्होंने अपना शेष जीवन दिल्ली ही में बिताने को निश्चय किया। इसका एक कारण यह भी था कि बीकानेर नरेश रायसिंहजी आपसे किसी कारणवश नाराज हो गये थे। जान पड़ता है कि महाराज रायसिंहजी के व्यवहार विशेष से इनकी कोमल आत्मा को धक्का पहुँचा होगा और निराशा के मानसिक वातावरण में गुजर कर वे देहली पहुँचे होंगे और सम्राट अकबर की कृपा के कारण उन्होंने अपना भावी जीवन देहली में ही व्यतीत करना निश्चय किया होगा। कुछ वर्षों के बाद महाराजा रायसिंहजी दिल्ली आये और उन्होंने जब मेहता कर्मचन्दजी की बीमारी का हाल सुना तब वे उनकी हवेली में पधारे और आँखों में आँसू भर कर उन्हें कई प्रकार से सांत्वना देने लगे। व्यवहारिक दृष्टि से करमचन्दजी ने भी महाराजा साहब को धन्यवाद दे दियां पर महाराजा साहब के चले जाने पर करमचन्दजी ने अपने पुत्रों को बुलाकर कहा कि महाराज के आँखों में आँसू आने का कारण मेरी तकलीफ नहीं है किन्तु इसका वास्तविक कारण यह है कि वे मुझे सज़ा नहीं दे सके। इसलिये तुम कभी बीकानेर मत जाना। सूक्ष्मदर्शी राजनीतिज्ञ करमचंदजी की यह भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई। सफल राजनीतिज्ञ मानवी प्रकृति का गंभीर ज्ञाता होता है और करमचंदजी ने महाराजा की मनोवृत्ति का अध्ययन कर उससे जो वास्तधिक सत्य निकाला, वह उनकी परम दूरदर्शितामयी राजनीतिज्ञता पर बड़ा ही दिव्य प्रकाश डालता है। थोड़े ही दिनों में करमचंदजी का शरीर इस संसार में न रहा। इसके बाद ही संयोग-वश सजा रायसिंहजी बुरहानपुर में बीमार पड़ गये। उस समय उन्हें अपने बचने की कोई आशा न रही ॥
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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