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________________ ओसवाल जाति का इतिहास सेठ समीरमल भेरूदान फतेपुरिया, अमरावती इस परिवार के पूर्वज सेठ भेरूदानजी दूगड़ 1 साल की आयु में सम्बत् १९1 में अमरावती आये । आपने यहाँ होशियार होकर “धर्मचंद केशरीचंद" भेरूदान जेठमल, तथा पूरनमल प्रेमसुखदास नामक दुकानों पर सर्विस की । सम्वत् १९४५ में आप स्वर्गवासी हुए। आपके पुत्र सेठ समीरमलजी दूगड़ का जन्म संवत् १९२७ में हुआ। आप अपने पिताजी के स्थान पर संवत् १९८२ तक “सेठ पूरनमल प्रेमसुखदास" के यहाँ मुनीमात करते रहे। इस समय आपके यहाँ आढ़त, रुई, दलाली तथा किराये का व्यापार होता है । अमरावती के ओसवाल समाज में आप समझदार तथा प्रतिष्ठित सज्जन हैं। सेठ रावतमल करनीदान गोलेछा, मद्रास यह परिवार खिचंद (मारवाड़) का निवासी है, तथा श्वेताम्बर स्थानकवासी आम्नाय का मानने वाला है। सेठ शोभाचन्दजी गोलेछा के पुत्र करनीदानजी और रावतमलजी हुए। सेठ करनीदानजी ने संवत् १९३८ में मद्रास में दुकान खोली। इसके पूर्व इनका विजगापट्टन तथा बम्बई में व्यापार होता था। संवत् १९४८ में करनीदानजी का स्वर्गवास हआ। आपके पुत्र जवानमलजी तथा सदासखजी ने और सेठ रावतमलजी के पुत्र बख्तावरमलजी और अगरचंदजी ने व्यापार को विशेष बढ़ाया। सेठ बख्तावरमलजी ने अंग्रेजों के साथ व्यापार कर बहुत उन्नति प्राप्त की। आप खिचंद व आसपास की पंचपंचायती में सम्माननीय व्यक्ति थे। संवत् १९७२ में ४५ साल की आयु में आप स्वर्गवासी हुए । आपके ३ साल बाद आपके पुत्र किशनलालजी भी स्वर्गवासी होगये, अतः उनके नाम पर विजयलालजी दत्तक आये हैं। आप विद्यमान हैं। गोलेला अगरचंदजी के कँवरलालजी, घेवरचंदजी, विजयलाल जी, नेमीचन्दजी तथा लालचंदजी नामक पुत्र विद्यमान हैं। इसी प्रकार सेठ जवानमलजी के पुत्र राजमलजी, अमरचंदजी तथा भंवरलालजी और सदासुखजी के पुत्र जीवनलालजी, माणिकलालजी तथा सुखलालजी विद्यमान हैं। इनमें विजयलालजी, किशनलालजी गोलेछा के नाम पर दत्तक गये हैं। • आप लोगों का मद्रास के “बेपेरी सुला" नामक स्थान में ब्याज और बैंकिंग व्यापार होता है। सेठ चौथमल दुलीचन्द दस्साणी, सरदारशहर इस परिवार का मूल निवास स्थान अजमेर है । वहाँ से यह परिवार बीकानेर, डांडूसर आदि स्थानों में निवास करता हुआ सरदारशहर के बसने के समय यहाँ आकर आबाद हुआ। यहाँ दस्साणी हुकुमचन्दजी आये । आप के सालमचन्दजी, चोथमलजी एवं मुलतानचन्दजी नामक ३ पुत्र हुए। आप बंधु संवत् १८८० के लगभग लखनऊ गये । कहा जाता है कि लखनऊ के नबाब से इनका मैत्री का सम्बन्ध था । सन् १९१४ में गदर को लूट होने से आप लोग सरदारशहर चले आये । इन भाइयों में सालमचन्दजी तो बीकानेर दत्तक गये । और सेठ चौथमलजी एवं मुलतानचन्दजी संवत् १९१५ में कलकत्ता गये । एवं मुलतानचन्द दुलीचन्द के नाम से कपड़े का व्यापार आरंभ किया। संवत् १९३५ में इस दुकान पर गरम और रेशमी कपड़े का धन्धा शुरू हुआ। आप दोनों भाई क्रमशः संवत् १९४९ में तथा १०३४ में स्वर्ग वासी हुए । सेठ चौथमलजी के दुलीचन्दजी, केसरीचन्दजी, चुनीलालमी, मग. ६८६
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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