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________________ श्रो सवाल जाति का इतिहास “सिल्वर मेडल घड़ी" देकर आपकी इज्जत की थी । आप के यहाँ " जेठमल लखमीचन्द" के नाम से बेकिंग व जमीदारी का कार्य्यं होता है, एवं बीकानेर स्टेट के प्रतिष्ठा प्राप्त परिवारों में इस कुटुम्ब की गणना है । यह परिवार श्री श्वे० जैन तेरापंथी आम्नाय का मानने वाला है। सेठ जेठमल लखमीचन्द फर्म के वर्तमान मुनीम चम्पालालजी चोरड़िया हैं। आपके पितामह सेठ चिमनीरामजी चोरड़िया रिणी से भादरा आये । इनके पुत्र सेठ बींजराजजी चोरड़िया सेठ लखमीचंदजी के समय उनके यहाँ सुनीम हुए। तथा मालिकों के कारबार को आपने बहुत बढ़ाया। भादरा की जनता में आप बड़े आदरणीय सम्माननीय एवं वजनदार पुरुष थे। संवत् १९७१ में आपका स्वर्गवास हुआ। आपके पुत्र चम्पालालजी भी प्रतिष्ठित, मिलनसार एवं सज्जन व्यक्ति है । सेठ संतोषचन्दजी सदासुखजी सिंघी, नौहर जोधपुर के सिंधी परिवार से इस कुटुम्ब का निकट सम्बन्ध था । वहाँ से १७५ वर्ष पूर्व यह परिवार " छापर " " आया, एवं वहाँ से "सवाई” में आबाद हुआ । सवाई से सिंधी परिवार सरदारशाह, सुजानगढ़ नौहर आदि स्थानों में जा बसा । सवाई से लगभग १५० साल पूर्व इस परिवार के पूर्वज लालचन्दजी के पिताजी नौहर आये। सिंधी लालचन्दजी के खेतसीदासजी, मेघराजजी तथा चौथमलजी नामक ३ पुत्र हुए। इनमें खेतसीदासजी सवा सौ साठ पूर्व आसाम प्रान्त के जोरहाट नामक स्थान में गये । कहा जाता है कि आपकी होशियारी से खुश होकर जोरहाट के तत्कालीन अधिपति ने आपको अपनी रिया सत का दीवान बनाया । १८ साल में कई लाख रुपयों का जवाहरात लेकर आप वापस मौहर आये । तथा आपने यहाँ सराफे का रोजगार शुरू किया। संवत् १९२५ आप स्वर्गवासी हुए 1 आपके पूरनमलजी तथा रिखबचन्दजी नामक २ पुत्र हुए। सेठ पूरनमलजी नौहर के म्यूनीसिपल मेम्बर व प्रतिष्ठित पुरुष थे । आप बड़े दयालु स्वभाव के थे। संवत् १९५६ में आपने जनता की अच्छी सहायता की थी । संवत् १९८४ में आपका स्वर्गवास हो गया। आपके पुत्र सेठ संतोषचन्दजी का जन्म संवत् १९४३ में हुआ । आप भी नोहर के अच्छे प्रतिष्ठित एवं शिक्षा प्रेमी सज्जन हैं। आप स्थानीय म्युनिसिपैलेटी तथा धर्मादा कमेटी के मेम्बर हैं । आपने अपने पुत्रों को शिक्षित करने की ओर काफी लक्ष दिया है। सेठ संतोषचन्द्रजी श्री जैन तेरापंथी सम्प्रदाय का अच्छा ज्ञान रखते हैं। आपके इस समय सदासुखजी, हीरालालजी, रामचन्द्रजी, पांचीलालजी एवं इन्द्रचन्दजी नामक ५ पुत्र । इन बन्धुओं में सिंघी रामचन्द्रजी बी० ए० पास करके दो साल पूर्व चार्टेड अकाउंटेंसी का अध्ययन करने के लिये लंदन गये हैं । सदासुखजी, हीरालालजी एवं पांचीलालजी का भी शिक्षा की ओर अच्छा लक्ष है । आप तीनों भाई फर्म के व्यापार में भाग लेते हैं । इस समय आपके यहाँ "संतोषचन्द सदासुख" के नाम से ११ आर्मेनियन स्ट्रीट में पाट का व्यापार होता है। श्री सदासुखजी के पुत्र भँवरलाल, जसकरण, हीरालालजी के पुत्र रतनलाल एवं रामचन्द्रजी के पुत्र जयसिंह हैं। नौहर में यह परिवार अच्छा प्रतिष्ठित माना जाता है। इसी तरह इस कुटुम्ब में सेठ, रिखबचन्दजी के पुत्र कालूरामजी नेपाल में व्यापार करते थे। संवत् १९८० में आपका स्वर्गवास हो गया । इस समय आपके पुत्र बेगराज भी कलकचे में एफ० ए० में पढ़ रहे हैं। ६८४
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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